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दिल्ली में
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आते ही बिना भूमिका के रधिया ने कहा, "माजी, मुझ पर बड़ी विपत है । बड़ा कलेस है। कोई नौकरी हो तो-माजी।"
यह सीधे अपरिचित घर में घुसकर नौकरी माँगने की प्रणाली से माजी का पहला परिचय था !
"मेरे यहाँ तो कोई जगह नहीं है।"
"मैं बाहर कहीं चली जाऊँगी। कोई आया-गया हो, जिसे रोटी वाली की या और किसी तरह से काम की ज़रूरत हो-मैं चली जाऊँगी। कोई भी तुम्हारे यहाँ पाया गया।"
"कौन आया-गया ? फिर कौन तुझे बेबूझे रखेगा ?" "नहीं, माजी, मैं तसदीक दिलवा दूँगी । देखो माजी..."
"एक आया तो है । मेरे लल्लू के साथ का पढ़ने वाला है। कह देखेंगी-उसे।"
"कौन हैं कौन हैं-माजी। जरूर कहना माजी। कहाँ के
"कानपुर का है । लड़के के साथ पढ़ा है, वकील है।" "क्या नाम...” "नाम तो जानती नहीं..."
"अच्छा माजी, ज़रूर कहना । देखो...। मैं कल आऊँगी।" -कहकर रधिया चली गई।
थोड़ी देर बाद एक लाल साफ़े का लट्ठबन्द सिपाही आ खड़ा हुश्रा।
"तुम्हारे यहाँ कौन आया है ?" "कोई नहीं..." "नहीं, ज़रूर कोई आया है..." "अाया है सो ?"