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तमाशा
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धनीचंद ने पूछा, "किसके लिए चाहिए ? पढ़ा-लिखा जरा ज्यादे लेगा, वैसे तो बहुत सस्ते मिल जाते।"
विनोद, "यह गाड़ी ली है न। इसके लिए चाहिए। और इन्ट्रेस तो होना ही चाहिए । बी० ए० मिले तो और अच्छा ।"
धनीचंद, “पैंतीस चालीस से कम में नहीं आयगा।" विनोद, "अच्छा होना चाहिए।" धनीचंद ने कोई-न कोई शीघ्र ही खोज देने का वचन दिया ।
यह वचन पाने के बाद विनोद फिर कुछ और बात न कर सका। चुपचाप घर पर आने धनीचंद ने कहा, "अच्छा अब मैं जाऊँगा।"
विनोद ने निरपेक्ष भाव से कहा, "अच्छा..."
धनीचंद ने कहा, "लाओ अच्छा, उस बालक को जरा बाजार की सैर करा लाऊँ ?"
विनोद ने कहा, "वह यहाँ है नहीं; गया है।" धनीचंद ने पूछा, “कहाँ गया है ?"
उस समय विनोद से सम्हला नहीं गया। अन्तर को जो अब तक मथ रहा था, वह वेग एकदम से फूट कर बाहर हो गया। वह अकस्मात् विह्वल हो उठा, धनीचंद के गले लगकर रो उठा, "धनीचंद, वह तो गया, गया । हम सबको छोड़ कर चला गया। न जाने कहाँ चला गया।"
धनीचंद के भी आँसू एकदम कहीं से टूट पाकर आँखों से टपाटप इस गले लगे हुए सफल वकील के सिरपर टपक कर उसे भिगोने लगे।