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तमाशा
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ऐसी ही अवस्था में पाये धनीचन्द । पाते ही उन्होंने कहा"मैं कल से ही सोच रहा था, आज जरूर आऊँगा। इतवार के अलावा और कभी फुर्सत मिलती नहीं।"
विनोद ने कहा, "आओ, बैठो।" धनीचन्द, “तुम आज खुश नहीं मालूम होते।" विनोद ने हँस-हँसाकर कहा, “वाह, क्यों ?"
धनीचन्द ने कहा, "हाँ, तुम्हारे बच्चे की तबीयत कैसी है। शायद यही वजह है। पर, अच्छी हो गई होगी,मैं भाशा करता हूँ।"
विनोद, "तबीयत ?- हाँ, बिल्कुल अच्छी हो गई है।"
धनीचन्द, "हाँ, आजकल मौसम जरा खराब है। खाँसी अक्सर हो जाती है । जरा पर्वाह करो तो हो भी नहीं, हो तो अच्छी हो जाय।"
विनोद 'हाँ' कहकर चुपचाप सुनता रहा । धनीचन्द कहते रहे, "उस रोज़ मैंने सब केस बिलकुल ठीक कर दिये । तुम तो तब से बिलकुल दीखे ही नहीं।" ___इसके बाद किस चतुराई से कहाँ क्या सिद्धि प्राप्त की, इसका. वर्णन स्वाद के साथ सुनाना उन्होंने आरम्भ किया । मन के ऊपरी तह पर जो उनके आत्मश्लाघा का भाव जमा रहता है वह चुक गया, तब कहा, "वह बच्चा आपका तो बिल्कुल अच्छा हो गया। बड़ा अच्छा हुआ । अब तो कल आओगे अदालत में । देखें, वह कहाँ है ?" _ विनोद ने कहा, "आपको जरा फुर्सत होगी मेरे साथ बाजार चलने की ? लौटकर देखिएगा। जरा मुझे मदद दीजिएगा।"
धनीचन्दजी ने पूछा, "क्या लाना है ?" विनोद ने कहा, "चलिए।"