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अब मैं तुम्हें काम से क्यों रोकूँ ? जाओ । पर; आना, देखो । प्रद्युम्न याद करता है ।"
धनीचन्द के चले जाने पर पन्द्रह-बीस मिनट तक और विनोद इन्साइक्लोपीडिया में व्यस्त रहा । फिर, जैसे सन्तोष नहीं हुआ,
।
वहाँ से शहर की बड़ी पब्लिक लायब्रेरी गया नोट्स इकट्ठ े करके लाया । दिन के कोई दो बजे " श्राज जल्दी आ गए।"
वहाँ से बहुत से घर श्रा पहुँचा ।
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तमाशा
था,
सुनयना ने कहा, बहुत खुश होकर विनोद ने जवाब दिया, "सबेरे से बैठा कोई काम आये, काम आये । मक्खी मारते-मारते मुझ से तो ज्यादे और बैठा नहीं गया । यहाँ चला आया । यहाँ आराम से तो तुम्हारे पास बैठूंगा ।... वह लल्लू -का-उल्लू कहाँ है ?”
सुनयना, "बड़ी मुश्किल से अभी हाल सुला के चुकी हूँ । बड़ा रोता था । उसका जी अच्छा नहीं है, भीतर से कल नहीं पड़ती, रोये नहीं तो बिचारा क्या करे। यह समझो, बड़ा दम साध के सोया है ।"
विनोद ने कहा, "देखो, फिर वही । हिम्मत के साथ बोलो । ऐसी रोती चिन्ता की आवाज़ में नहीं बोला करते । इस जरा-सी बात पर ही जैसे तुम गिरी जा रही हो । मन हमेशा सतर रक्खा करते हैं । और बच्चे को कुछ भी नहीं है । थोड़ी भी एतिहात रखोगी, सब ठीक हो जायगा । पानी थोड़ा-थोड़ा दिया करो । कच्चा मत देना, उबालकर देना । और हवा से मत डरना, हवा T बड़ी अच्छी चीज है । ज्यादे हवा का डर हो, कपड़े पहना दिये । लेकिन जहाँ हवा खूब बहती रहती हो, खुल कर श्री जा सकती हो, उल्लू को वहाँ रखना चाहिए। और यह नहीं कि जब चाहे दूध पिला दिया। आजकल इस मामले में भी होशियारी रखनी चाहिए।