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तमाशा
१३५ विनोद ने कहा, “खाँसी ?"
सुनयना ने कहा, "हाँफ-हाँफ जाता है । ऐसी उठती है कि फिर बड़ी देर में रुकती है । बड़ी तकलीफ देती है।
विनोद ने कहा, "अरे क्या खाँसी-वाँसी ।" ये तो हुआ ही करती हैं। ज्यादे बहम नहीं किया करते । ___ सुनयना, "किसी को दिखा-दिखू देते जरा । रोग बढ़ जाय, फिर हाथ नहीं आता।"
विनोद, "क्या दिखाना-दिखूना करती हो। अभी से समझ बैठीं कि रोग हो गया । भला खाँसी भी रोग है ? पर पहले से ही सोचने लगोगी तो रोग न होगा, तो हो जायगा।" ___ सनयना, "तुम्हारी मर्जी । मैं तो कहती थी कि नेक कोई देख जाता, देखने में तो कोई हर्ज है नहीं; ज्यादे क्या, दवा मत करना।"
विनोद, "देखो सुनयना, मैं तुम से कहता हूँ कि किसी को भूलकर भी न दिखाना । जब बच्चे से हाथ धोना तय कर लो, तब डाक्टर हकीम की याद करना।"
ऐसी बात के आगे सुनयना से कैसे चला जाय ? जी तो नहीं माना, पर चुप हो गई।
विनोद ने कहा, "दिखाना तो, कहाँ है ?"
जहाँ शिशु लेटा हुआ था सुनयना उसे वहाँ ले गई । विनोद ने उसकी नाड़ी देखी-कुछ तेज़ मालूम हुई । माथे पर हाथ रखकर देखा-जैसे देही कुछ गरम हो।
कुछ ठहरकर कहा, “खबरदार, जो किसी को दिखाया ।"
यह खबरदारी की हिदायत स्पष्ट रूप से उन्होंने सुनयना को ही की हो, लक्षणों से ऐसा न जान पड़ा । उस समय उनकी निगाह बच्चे की तरफ ही थी। मानों उसको उपलक्ष में रखकर सब किसी