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तमाशा
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विनोद ने इस पर दूसरे हाथ को भी कब्जे में किया और दोनों से खींचकर उसे उठाना शुरू कर दिया। _सुनयना ने इस आपत्तिकाल में अपनी टेक को विसारकर, बड़ी शीघ्रता से आँख खोलकर कहा, “अरे तो छोड़ो, मैं खुद चलती हूँ। ऐसा भी क्या !"
चल-चलाकर आँगन में आये । चादर से ढके पिरामिड को दिखाकर कहा, "अच्छा, बताओ, इसमें क्या है ?"
सुनयना ने कहा, "मैं क्या जानूँ ?" विनोद, "अरे, सोच कर बताओ।" सुनयना, “मैं क्या जानूँ ?" विनोद, "ठीक-ठीक बताओगी, तो चार पैसे मिलेंगे। सुनयना, “मैं नहीं जानती।"
विनोद, "अच्छा, एक है ताजबीबी का रोजा, दूसरा है कुतुबमीनार । इन दोनों में से यह क्या चीज हो सकती है ?
सुनयना, "मैं कुछ नहीं बताती।"
हार-हूरकर विनोद ने कहा, "अच्छा तो जरा दूर हो जाओ। जो कुछ है वह काटने को दौड़ेगा।" __सुनयना की मंशा तो दूर होने की नहीं थी, पर कुछ निकलकर इसमें से सचमुच काट-कूट खाय तो ? वह पीछे हट गई।
विनोद ने चादर हटाने में सफाई से वह रुकावट भी दूर कर दी। ___ फरी-फर करके मोटर वह-जाय वह-जाय ।
जब देखा कि यह मोटर सत्याग्रह करके इस दीवार या उस चीज से टक्कर खाते-खाते बाज ही नहीं आती, तब उसे यत्न से दबोचकर काबू करके विनोद ने बक्स में बन्द कर दिया ।