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तमाशा
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घोषणा प्रारम्भ कर दी कि पदार्थ नितान्त अस्वाद और अनुपादेय है।
ऐसे समय विनोद को हाथ की चिट्ठियों को फेंक देना पड़ा। उसने बालक को गोदी में उठा लिया, कहा-"हो गई भई आलोचना !" और साप्ताहिक पर ठोकर मारकर कहा- "हट किसी काम का नहीं है तू । कड़वा-कड़वा थुः है।" ऐसा कहकर उसे और मारा, और उसपर बिना-थूके थूका । जान पड़ता है, इस प्रकार पत्र के प्रति बालक के मन की प्रतिकूलता और कड़वाहट तृप्त नहीं हुई, रोना जारी ही रहा।
तब डोल-डोलकर उसे बहलाने के विनोद ने अन्य यत्न किये।
लेकिन नहीं-सुनयना झट आ पहुंची थी। उसने पूछा"क्या है ?"
विनोद चलते-चलते एक जगह एकदम बैठ गया। पास ही पड़ा था एक चम्चच, उसे उठाकर फर्श पर मारने लगा, “श्रा हा रे, ओ हो रे..."
बालक चुप नहीं हुआ । सुनयना को आदेश हुआ, “वह पंखा उठाना।"
सुनयना ने पंखा उठाकर ला दिया । उस पंखे की डंडियों से फिर फर्श को पीटा जाने लगा। कभी बीच-बीच में उसी से बालक की हवा भी की जाती।
उस समय विनोद को कुछ याद आया। कहा, "अरे, वह मुनझुना तो लाना।"
सुनयना ने कहा, "कहाँ है..." विनोद ने कहा, "जल्दी से ला...." सुनयना चली गई।