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तमाशा
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इसलिए हमारा कैसे हो गया ? चोर ले जाकर अपने घर में गाड़ ले, तो वह फिर उसका हो गया ? नहीं, न वह चोर का है, न मेरा है । सब परमात्मा का है । हम अपना कहें, तो वह तो वैसे ही हुआ जैसे चोर अपना कहे।" __ इन गड़बड़ बातों को लेकर सुनयना क्या करे ? सन्तोष होता नहीं, निरुत्तर हो जाना पड़ता ही है । कहा, "रुपया खूब जमा-जमा कर रक्खो । मालूम नहीं, उसका क्या करना चाहते हो। और मैं मुफ्त नौकरनी मिल ही गई हूँ, सो सब काम से लदी खिंची-खिंची मौत के दिन तक चली चलूँगी।"
ऐसी बात सुनयना कहती तो है, पर यह नहीं कि अपने प्रति पति के प्रेम के बारे में जरा संदिग्ध है। ऐसी जोर की और तीखी बात तो इसलिए कहती है कि वह पति को हराना चाहती है। तर्क के उत्तर में तर्क न देना आदमी से नहीं होता, और जब नीचे तल के साधारण तर्कों की कमी होती है, ऊँचे या गहरे तल के तर्कों से काम लिया जाता है । इसी प्रकार का एक गहरा तर्क है, व्यंग एक है क्रोध; एक है 'धमकी'; और एक है, 'मृत्यु का स्मरण और
आवाहन'; लेकिन सबसे द्रावक और मूर्तिमान् तर्क है-'आँसू । सुनयना ने अपने ढंग का तर्क दिया, और साथ ही उसकी पुष्टि के लिए आँखों में आ चमके आँसू।।
विनोद ने कहा, "अच्छा-अच्छा रख लो । मैं ढूँढ दूंगा एक नौकर । कहारी को भी कहूँगा । लेकिन, सुनिया, उस कहारी के घर में भी क्या कोई कहारी लगी होगी ? क्या नौकर के भी कोई नौकर होगा ? फिर हम क्यों दम्भ करें ?..." __ जब पति मुक गया तो पत्नी ने भर पाया। बस, विनोद हार गया ; अब पति की उस हार को लेकर कोई वह अपने पास थोड़े