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जैनेन्द्र की कहानिया [द्वितीय भाग] कर जैसे खींचना चाहते हुए कहा, "चलो अच्छा, खाना खाने चलो।"
विनोद ने कहा, "तो यह पाँच महीने का बच्चा पूरा आदमी है । जम्हाई लेता है, छींकता है, खाँसता है, सब-कुछ है। सारे व्यापार करता है । यह तो बड़ी खूब बात है !"
पति की इन मूर्ख बातों का वह क्या जवाब दे ? लेकिन सुन बड़े ख्याल से रही है, इनकी गाँठ बाँध लेगी, और मौकों पर इनका उपयोग करेगी। जब बघार रहे होंगे पण्डिताई, तब छाँट-छाँट कर उनकी इन मुर्खताओं को पेश करेगी।
खींच-खाँच कर वह उन्हें रसोई में ले गई।
खिला रही थी कि लल्लू रोया।
सुनयना पति को थाली पर छोड़ झट से उसे लेने दौड़ गई। गोदी में हिलाती-हिलाती डोल-डाल कर गाने लगी
भारी चिड़िया आ री आ लल्लू की चिड़िया आ री श्रा लल्ल की निंदिया ला री ला
लल्लू को सुलाती जा। अपनी अम्माँ के इस आशु-कवित्व पर पहले तो वह लल्लू मुग्ध होता न दीखा । कुछ देर बाद, वह मनने लगा-जैसे सोचसाचकर अपनी कवयित्री माँ की कविता का सम्मान करना उसने तय कर लिया । धीरे-धीरे फिर वह सो चला।
इस समय विनोद ने कहा, "पानी दे दो।" सुनयना बोली, "मैं तुम से कब से कह रही हूँ, इसके लिए एक