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अपना-अपना भाग्य
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का वह बेटा-वह बालक, निश्चित समय पर हमारे 'होटल-डिपव' में नहीं आया । हम अपनी नैनीताल-सैर खुशी-खुशी खतम कर चलने को हुए। उस लड़के की आस लगाते बैठ रहने की जरूरत हमने न समझी। ___ मोटर में सवार होते ही थे कि यह समाचार मिला-पिछली रात, एक पहाड़ी बालक, सड़क के किनारे, पेड़ के नीचे ठिठुरकर मर गया। ___मरने के लिए उसे वही जगह, वही दस बरस की उम्र और वही काले चिथड़ों की कमीज़ मिली! आदमियों की दुनिया ने बस यही उपहार उसके पास छोड़ा था।
पर बताने वालों ने बताया कि गरीब के मुंह पर, छाती, मुट्टियों और पैरों पर बरफ की हलकी-सी चादर चिपक गई थी। मानो दुनिया की बेहयाई ढकने के लिए प्रकृति ने शव के लिए सफेद और ठण्डे कान का प्रबन्ध कर दिया था ?
सब सुना और सोचा-अपना-अपना भाग्य !