________________
६२
जैनेन्द्र की कहानियाँ [द्वितीय भाग] दिया है । देखो न, उस रोज उनके यहाँ से कपड़े-जेवर सब चला गया । और तो और बर्तन तक ले गए।" ___ यह समाचार पुराना पड़ गया था; पर आज इस मौके पर वह फिर नया हो पाया।
दुलारी बोली, “दूर क्यों जाओ, रात की बात मुमानीजी से ही न पूछो कि रह-रहकर कैसा खटका होता रहा और सबेरे देखते हैं, तो साफ निशान हैं कि किसी ने कुण्डे पर हाथ आजमाया है।" . मुमानी इस मण्डली में कुछ नई हैं। शायद वजह यह भी हो कि वह अकेली मुसलमान है । लेकिन उनके कुण्डे की बात आई, तो उत्साह से उन्होंने पूरा बखान किया, "नवाब साहब आये न थे। दो का वक्त था । ए० आर० पी० के काम में उन्हें अक्सर देर हो जाती है । अब घर में हम सब जनीं अकेली । मर्द कोई भी नहीं । बहन, कुछ पूछो नहीं । खट-खट सुन रही हैं ; पर कुछ करते नहीं बनता। आपस में घुस-फुस कर के रह जाती हैं और सबके धुकधुकी हो रही है। मैंने तो सबेरे ही कह दिया, या तो नौ बजे आ जाओ, नहीं तो मकान तब्दील करो । खुदा जाने, मैं तो नौ बजे किवाड़ बन्द कर लिया करूगी। मेरी बला से फिर वे कहीं रहें । सोएँ वहीं जाके अपने ए० आर० पी० में । खुदा कसम बहन, देर तक छत पर से कई क़दमों के चलने की आहट आती रही । यह चोर...।"
जैनमती बोली, "क्यों, बशीरमियाँ घर में नहीं थे क्या ?"
मुमानीजान ने कहा, "उनकी भली चलाई। नई शादी हुई है, तो उन्हें क्या होश है ? दोनों को अपना कमरा है और बस । बाकी उनकी तरफ से सब-कुछ क्यों न लुट जाय । अब सच तो