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जैनेन्द्र के जीवन-दर्शन की भूमिका
जगत की समस्त व्याप्ति को जीवन से आत्मसात् करके स्वीकार करते है । वस्तु र पाद बाहर की चीजे है, किन्तु जीवन का सत्य आत्मोपलब्धि मे ही प्राप्य है । अतएव जैनेन्द्र साहित्य मे बाह्य निष्ठा अथवा प्रचार का प्रश्न ही नही उठता । जहा व्यक्ति की आत्मता प्रधान है वहा पारस्परिक भेद-भाव स्वत ही निराधार सिद्ध हो जाते हे ।
तत्त्व-दर्शन के प्रचार में भारत के ही नही, विदेशो मे भी बडे-बडे दर्शनशास्त्र और मतवाद खडे हो गये है । जैनेन्द्र का विश्वास हे कि ईश्वर है या नही, उसका क्या स्वरूप है, इस सम्बन्ध मे वे तर्क का सहारा लेकर कोई निश्चित निर्णय नही देते । ईश्वर के सम्बन्ध में वे परम जिज्ञासु के सदृश्य
नुमान ही लगाते हे । उसके सम्बन्ध मे कोई निरपेक्ष मत प्रस्तुत करके उसे ही सर्वोपरि नही मानना चाहते । जैनेन्द्र ने कहानी की रचना -दृष्टि प्राप्त करने के हेतु ही की हे, दृष्टिदान के हेतु नही की है ।
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वे तत्व प्रचारक नही एव युक्तियों का व्यूह नही रचते
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आधुनिक साहित्यकारो मे अधिकाशत प्रचार की भावना विशेष रूप से सदगत होती है । वे नवीनता की छाप लगाकर अपने नाम से किसी नए बाद सिद्धानादि का प्रचार करना चाहते है प्रचार की कामना से ही वे प्राचीन प्रादर्श की उपेक्षा मे जुटे हुए है । किन्तु जैनेन्द्र की साहित्य-रचना प्रतिनियामक और प्रतिस्पर्धात्मक न होकर नितान्त सहज और आत्मोपलब्धि के रूप में ही हुई है । प्रचारक को नाना प्रकार की युक्तियों के व्यूह रचकर अपने पक्ष को प्रमाणित करना पडता है, किन्तु जैनेन्द्र ने अपने मत की सत्यता को सिद्ध करने के लिए युक्तियो का जाल नही बिछाया है । वे सामान्य रूप से अपनी बातें कहकर फिर उनकी प्रतिक्रिया के सम्बन्ध में चिन्तित नही होते । जैनेन्द्र की रचनाशीलता की अपरिग्रहिता भी उनके व्यक्तित्व की सहजता का स्पष्ट प्रमाण है । यदि उनमे यश की आकाक्षा होती तो स्वेच्छा से सदैव रचना करते रहते । सत्यता यह है कि अधिकाश कहानियों और उपन्यासो की रचना उन्होने ऊपरी दबाव के कारण की ।
जैनेन्द्र जीवन द्रष्टा हे । द्रष्टा ज्ञाता से अधिक हे । जानकर जो ज्ञानी बनते है वे व्यावहारिक जीवन में असफल रह जाते है, किन्तु जीवन को देखकर और उसके सत्यो म प्रवेश करके नवीन दृष्टि प्राप्त करने वाला व्यक्ति ही सत्य का सच्चा बोधक और निर्णायक हो सकता है । जैनेन्द्र के साहित्य मे बौद्धिक प्रगल्भता के साथ-साथ हृदयगत प्रसादिकता भी दृष्टिगत होती है । जैनेन्द्र द्वारा रचित विचार-प्रधान निबन्धो में उनका चिन्तनशील व्यक्तित्व सहज ही