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________________ २४० जैनेन्द्र का जीवन-दर्शन वृत्ति ही मशीन की वृद्धि को प्रोत्साहित करने का एकमात्र कारण है। जेनेन्द्र के अनुसार जब तक मनुष्य की अमोघता की ओर ध्यान आकृष्ट नहीं होगा, तब तक भौतिक सुख-सुविधा के द्वारा स्थापित सस्कृति और सभ्यता निर्मूल्य ही रहेगी। ___ श्रावुनिक सभ्यता बुद्विप्रधान हे, आस्था और प्रात्मबल उसमे से लुप्तप्राय हो गये है। इस प्रकार साम्यवादी नीति जो कि पूजीवाद के विरोध मे फलित हुई थी वह भी अपने लक्ष्य को पूर्ण करने में समर्थ न हो सकी । जैनेन्द्र की दृष्टि मे पूजीवाद मे यदि आर्थिक विषमता थी तो साम्यवादी विचार आर्थिक खुशहाली के लिए ही प्रत्यनशील है। जैनेन्द्र के अनुसार पूजीवाद के उन्मूलन से महाजन का अस्तित्व नही रहता है, किन्तु मशीन की अधिकता मजूर और मालिक के भेद को मिटाने मे सफल नही हो सकती। 'अनन्तर' मे जैनेन्द्र ने साम्यवाद के द्वारा होने वाली प्रतिक्रिया पर प्रकाश डाला हे । उनकी दृष्टि मे जब तक प्रत्येक व्यक्ति सेवा-भाव से युक्त होकर छोटे-से-छोटा कार्य करने हेतु तत्पर नही होगा, तब तक व्यक्ति-भेद का दोष समाज से दूर नही किया जा सकता। वस्तुत जैनेन्द्र मानव समाज की प्रगति तथा एकता के हेतु इण्डस्ट्री को विशेष लाभप्रद नही मानते । उनके अनुसार 'इण्डस्ट्री के भरोगे देश का काम नही चलेगा। इससे समय का अपव्यय भी होता है । अतएव उद्योगो द्वारा ही मानवता का पूर्ण कल्याण सम्भव हो सकता है । जैनेन्द्र के अनुसार व्यावसायिक उद्योग से मुक्ति प्राप्त करने के लिए छोटे-मोटे उद्योगो को प्रोत्साहन देना आवश्यक है। १ 'पूजीवादी विचार प्रकट मे ही आर्थिक है। साम्यवादी विचार भी सर्वथा आर्थिक है, इसकी मूल प्रेरणा प्रार्थिक खुशहाली है। कुन्छ की आर्थिक सम्पन्नता के प्रति आकाक्षा और सम्पन्नता के वर्तमान भोक्तानो के प्रति विद्वेष जगाने से उसका काम सधता है।' --जैनेन्द्रकुमार 'समय और हम', पृ० ११२ । २ 'सब स्वेच्छा से मजूर बन जाते तो शायद वह अलग से नही भी रहता। पर वह तो हुआ नही । सोचा कि मशीन से मजूर को हटा देगे । वह भला कैसे हो सकता था ? और जो हुआ वह यह कि मजूर रहा और महाजन हटा तो उसकी जगह हजूर आकर विराजमान हो गए।' ---जैनेन्द्रकुमार 'अनन्तर', पृ० स० ८६ । ३ जनेन्द्रकुमार 'अनन्तर', पृ० स० ८० ।
SR No.010353
Book TitleJainendra ka Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusum Kakkad
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1975
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size43 MB
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