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________________ जैनेन्द्र और व्यक्ति २२३ के अनुसार व्यक्ति की महानता कर्म मे न होकर उसकी भावना मे ही निहित होती है । जैनेन्द्र के अनुसार व्यक्ति के पापी प्रथवा पुण्यात्मा होने का दायित्व उसी पर नही है । परिस्थिति की विवशता भी व्यक्ति को सद् ग्रसद् कर्मो की और उन्मुख करती है ।' 'चोरी' शीर्षक कहानी में लेखक ने यह दर्शाया है कि किस प्रकार व्यक्ति न चाहते हुए भी चोरी करने के लिए विवश होता है । सामाजिक विषमता तथा अव्यवस्था के कारण सज्जन व्यक्ति को भी चोरी करनी पडती है । ' 'फासी' शीर्षक कहानी मे शमशेर डाकू ही नही, सहृदय बेटा भी है। उसके हृदय में प्यार, ममता आदि भावो का आगार है । उसमे अतिथिसम्मान की भावना भी विद्यमान है किन्तु कर्तव्य के मार्ग मे उसकी भावुकता बाधक नही बनती । शत्रु के समक्ष वह क्रूरता की प्रतिमूर्ति है, तो मा के समक्ष भोला बालक है | क्रूरता उसका दोष नही है, वरन् आभूषण है ।' 'साधू की हठ' कहानी मे दारोगा घर आये साधु के कारण अपनी पत्नी को बहुत बुरी तरह पीटता है, किन्तु साधु की अतिशय सहनशीलता उस निष्ठुर व्यक्ति के हृदय की करुणा और दया को जाग्रत कर देती है। वस्तुत प्रत्येक व्यक्ति सन्त और दुष्ट दोनो है ।" न कोई बहुत निन्दनीय है और न ही कोई विशुद्धत भला ही है । उपरोक्त कहानी 'साधु की हठ' मे दारोगा की क्रूरता का कारण उसका निसन्तान होना है । अतएव निष्ठुरता उसकी विवशता है । सहृदयता मानवीय सस्कार है, यही कारण है कि अन्तत मानवीय गुणो की ही जय होती है । जैनेन्द्र के अनुसार व्यक्ति व्यक्ति के बीच श्रेणी - विभाजन करना नितान्त असंगत है । उनकी दृष्टि मे व्यक्ति का आदर्श अच्छाई और बुराई से ऊपर उठना है, किन्तु अच्छाई और बुराई का लेबिल लगा लेने से परस्पर द्वेष की भावना उत्पन्न हो जाती है । व्यक्ति : टाइप नहीं जैनेन्द्र के साहित्य मे अभिव्यक्त व्यक्ति प्रतीक है । न वह 'टाइप' है, न 'पापी पापी नही है, पुण्यात्मा पुण्यात्मा नही है... किसी के कुछ होने के लिए सहसा दोष मै उसको नही दे पाती ।' - जैनेन्द्रकुमार 'सुखदा', पृ० स० ७२ । २ जैनेन्द्रकुमार 'जैनेन्द्र की कहानिया', भाग ६, पृ० स० १५० । ३ जैनेन्द्रकुमार : 'प्रतिनिधि कहानिया', स० शिवनन्दनप्रसाद, पृ० स० २२ । ४. जैनेन्द्रकुमार : 'जैनेन्द्र की कहानिया' भाग ६, पृ० स० २७-२८ । ५. जैनेन्द्रकुमार : 'जैनेन्द्र की कहानिया', भाग ६, पृ० स० १६२ ।
SR No.010353
Book TitleJainendra ka Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusum Kakkad
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1975
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size43 MB
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