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________________ जैनेन्द्र के ग्रह सम्बन्धी विचार १४६ कल्पना नही की जा सकती । प्रत्ययो का कोई कारण अवश्य है और वह है 'अह' ( माइसेल्फ) जीव (सोल) या 'आत्मा' (स्पिरिट ) आत्मा का ज्ञान प्रत्ययो के रूप मे नही हो सकता, क्योकि प्रथम जडवत है और आत्मा चेतन तथा सक्रिय है । अन्तत वर्कले ने आत्मा अथवा ग्रह के अस्तित्व को अन्तर्बोध ( नोशन) के आधार पर सिद्ध किया है । इस प्रकार वर्कले के अध्यात्मवादी विचारो से जैनेन्द्र मे साम्य प्रतीत होता है । जैनेन्द्र के विचारो पर भी आध्यात्मिकता की पूर्ण छाप दृष्टिगत होती है । जैनेन्द्र और वर्कले के विचारो के मूल में साम्य है, वह वर्कले के विचारो की प्राध्यात्मिकता के कारण ही सम्भव है । वस्तुत जैनेन्द्र के ग्रह सम्बन्धी विचारो पर वर्कले का ही प्रशिक प्रभाव लक्षित होता है । साराशत जैनेन्द्र के साहित्य का विवेचन करते हुए हम उनके विचारो को पूर्णरूप से किसी भी पाश्चात्य दार्शनिक के निकटस्थ नही रख सकते । भारतीय दर्शन भारतीय दर्शन की परम्परा मे जैनेन्द्र के विचारो को मुख्यत अद्वैत वेदान्त, साख्य दर्शन और जैन दर्शन के संबध मे विवेचित किया जा सकता है। शकर के आत्म सबधी विचारो की छाप जैनेन्द्र के विचारो पर स्पष्टत परिलक्षित होती है। शकर के अनुसार 'आत्मतत्व', 'परमतत्व' अभिन्न है। आत्मा का स्वरूप है, आत्मा-परमात्मा मे जो भेद दृष्टिगत होता है, वह अज्ञान तथा भ्रम के कारण ही प्रतीत होता है । अन्यथा दोनो एक है। शकर ने पारमार्थिक सत्य से परे व्यावहारिक दृष्टि के आधार पर 'जीवात्मा' को बाह्य जगत का भोक्ता स्वीकार किया है। शकर की पारमार्थिक दृष्टि अद्वैतवादी होने के कारण आत्मा को अनेकता का हेतु नही मानती । जगत मे व्याप्त अनेकता का कारण माया है जो जीव मे आत्मा और ब्रह्म की एकता को स्थापित करने में असमर्थ है। शकर के अनुसार प्रज्ञान का अधकार दूर हो जाने पर आत्मा और ब्रह्म की अद्वैतता का बोध हो जाता है । जगत मिथ्या है, अतएव अनेकता भी असत्य है। एकता की प्राप्ति ही जीवन का परम लक्ष्य है । जैनेन्द्र-साहित्य पर अद्वैत वेदान्त का बहुत अधिक प्रभाव दृष्टिगत होता है । जैनेन्द्र साहित्य मे जीवन के १. कमलाराय 'कान्सेप्ट ग्राफ सेल्फ', पृ० १५ । २. ' एक सत् और विप्रा बहुधा वदति । - ' एक अनेक वह और मै ।' -- जैनेन्द्र 'अनन्तर', पृ० स० ८५ । ३ डा० राधाकृष्णन् 'इण्डियन फिलासफी', पृ० स०४८३ ।
SR No.010353
Book TitleJainendra ka Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusum Kakkad
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1975
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size43 MB
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