SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 147
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४२ जैनेन्द्र का जीवन-दर्शन अमरता की ओर इगित किया है । जैनेन्द्र के अनुसार जीवन की पूर्णता मौत मे भी जीवन की झलक देखने पर ही सम्भव होती है।' मृत्यु का भय ___ जैनेन्द्र के साहित्य मे जब हम मौत के निषेधात्मक पक्ष का अवलोकन करते है तो हमे उनकी कई कहानियो मे उनके पात्रो के मन मे अवस्थित मौत के भय का सकेत मिलता है । 'मौत की कहानी' इस दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण है। इस कहानी मे लेखक ने मौत के पूर्व उत्पन्न होने वाले भय का बडा ही स्वाभाविक और जिज्ञासापूर्ण चित्रण किया है। तम्बाकू न खाने वाला व्यक्ति अनजाने मे तमाखू खा लेता है, उसकी जो प्रतिक्रिया होती है, उससे वह स्वय को शत-प्रतिशत मृत्यु के निकट आया हुआ ही अनुभव करता है । वह यह नही जानता कि उसकी समस्त विकृत चेष्टाओ का कारण तम्बाकू का नशा है। ऐसी स्थिति मे उसके द्वारा जो भावाभिव्यक्ति होती है, उससे उसके हृदय मे स्थित मृत्यु के भय से सम्बद्ध विचारो का पूर्ण परिचय मिलता है । जैनेन्द्र के अनुसार 'मौत कैसी होती है कोई नही जानता।३ _ 'मौत की कहानी' मे यम के भयावह रूप पर प्रकाश डालते हुए स्पष्ट किया है कि 'यम नाम का देव है, सचमुच बडा डरावना है। वास्तव में वह किसी अस्त्र-शस्त्र से आदमी को नही मारता, दर असल वह मारता ही नही है, आदमी उसे देखकर डर के मारे स्वय ही मर जाता है। 'पत्नी' शीर्षक कहानी मे भी लेखक ने मृत्यु के भय पर प्रकाश डालते हुए बताया है कि प्रत्येक व्यक्ति इस सत्य से अवगत होता है कि उसे एक-न-एक दिन मरना अवश्य है, किन्तु मृत्यु की कल्पना ही उसे भयभीत कर देती है। व्यक्ति के अन्तर्निहित मार ने ही यम के १ 'जैनेन्द्र की कहानिया', भाग ८, पृ० स० ५२। २ 'जो पूरा जीता है वह मौत मे भी जीवन देख सकता है। वही जिसके पास जीने के लिए कुछ है और वही मरने के लिए है।' -जैनेन्द्र की कहानिया, भाग २, पृ० ४५ । ३ जैनेन्द्र की कहानिया (मौत की कहानी), पृ० ६८ । ४ जैनेन्द्र की कहानिया (मौत की कहानी), पृ० ६८ । ५ 'यद्यपि वह जानती है कि मरना सब को है-उसको मरना है-उसके पति को मरना है पर उस तरफ भूल से छत पर देखती है तो भय से मर जाती है।' -जैनेन्द्र की कहानिया ।
SR No.010353
Book TitleJainendra ka Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusum Kakkad
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1975
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size43 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy