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जैनेन्द्र और धर्म
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हो पाता है । जैसे ही उसे अपने अभिमान का बोध होता है, उसके लिए मोक्ष का मार्ग कठिन नही रह जाता है । वस्तुत जैनेन्द्र के जीवन, धर्म और दर्शन सब का सार हे 'ग्रह से मुक्ति ।' ग्रह से मुक्ति प्राप्त होने पर ही मोक्ष की प्राप्ति सम्भव हो सकती है । यही जैनेन्द्र की धार्मिक दृष्टि का सार तत्व है ।