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________________ ( ७३ ) प्राता है। हमने किसी जगह बर्द्धमान जी की सहल शक्ति का उदाहरण दिया है। यही बहुत है, त्याग और दान दोनो की यह कलकती हुई दिव्य प्रतिमा है दादे स्याग त्याग दे त्याग, छोड मोर ओर शेर। यही त्याग की वन्तु है, इसत्ता भोर न छोर ॥१॥ घर छोडा तो पाना, देह मंग नित गेह । यह तो तेरे साप है, देह का त्याग-स्नेह ।।२१) दर तना, अच्छा किया, यह अजीय फा,रूप। ममतात्याग का त्याग , मागे भरम का कृप । ममी तजी तोश्यारा,माग तजा नहि जाय। गजा भिखारी दोन को, माम रहा लिपटाय ॥४॥ मानतजा प्रथमा लिया, मम हुये मान अपमान । अप तगने को क्या रहा। जीते जी निर्वाण ॥५ है दे दे फुष तो गक्षा, दान धर्म न्यौहार । दान शुद्ध उदय करे, सम भगम विचार ।। ६ ॥ सय लग नाता देव पा, तब नग दे कुष दान ! प्रेम प्यार सन्मान दे, दान की महिमा जान ॥ ७ ॥ सीव जन्तु संग दया कर, दया भाव नित पाल । दया दान उत्तम महा, हिया जिय को निहाल॥ ॥ मन मानी और फर्म से, हुआ अहिसक मो बह दानी है जगत में, सब का प्यारा सो TE
SR No.010352
Book TitleJain Dharm Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivvratlal Varmman
PublisherVeer Karyalaya Bijnaur
Publication Year
Total Pages99
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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