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प्रस्तावना
मामा शिवननलाल जी धर्मन का विद्वत्तापूर्ण लेख जैनियों के दशमनरा धर्म पर पढ़ कर मेरा नाकरण उक्त निप्पज्ञ निढान को कोटिशः धन्यवाद दिये बिना नहीं रह सकता है। जिन्होंने प्रजन होते हुए भी इस तरह इस निवन्ध को मालित किया जिसने पढ़ने वाले को इसमें फोर्ड सन्देह नही र जाता कि शापकी गाद भपिन व निष्टा जैन सिमान्ल पर नया धार जैनाचार्यों के बारया का बड़े हार्दिक प्रेम से मनन फन्त श्राप के इस निरन्धसे उन जैन भादयो को शिक्षा प्रहग करनी चाहिये जो जनमत को निरादर की ष्टि से देखने नया कभी २ अपरानों का भी प्रयोग फर बैठने एं। हमें पूर्ण विश्वास है कि यदि शानजिशानु जेन मत
र तत्त्वज्ञानरूपी अमृत का स्वाद लेंगे तो उनकी प्रान्मा को • यात संताप होगा और उन्हें सच्चे नुरा का पोत नपने पास ही दिन जायगा।
घाम्न में यह जैनदर्शन वस्तु-स्वरूप को दिखाने घाला है। जगत् में यदि केवल जीव ही होता नो भी संसार सम्बन्धी प्रागननाएँ न होनी और यदि अनीस पी अजीव होना नो मी फोर्ड कल्प विकल्प या दुधा सुप के अनुभव के भाव