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जैनधर्म का प्राण
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धर्मशरीर के सिवाय धर्मप्राण की स्थिति भी असभव है। जैन-परपरा का धर्मशरीर भी सघ-रचना, साहित्य, तीर्थ, मन्दिर आदि धर्मस्थान, गिल्पस्थापत्य, उपासनाविधि, ग्रथसग्राहक भाडार आदि अनेक रूप से विद्यमान है।
(द० औ० चि० ख० २, पृ० ११६-१३१)