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आध्यात्मिक विकासक्रम
मोक्ष यानी आध्यात्मिक विकास की पूर्णता । ऐसी पूर्णता अचानक प्राप्त नही हो सकती, उसे प्राप्त करने मे अमुक समय व्यतीत करना पड़ता है । इसीलिए मोक्ष की प्राप्ति के लिए आध्यात्मिक उत्क्रान्ति का क्रम मानना पड़ता है । तत्त्वजिज्ञासुओ के हृदय में स्वाभाविक रूप से ऐसा प्रश्न उठता है कि इस आध्यात्मिक उत्क्रान्ति का क्रम कैसा है ?
आत्मा की तीन अवस्थाएँ
आध्यात्मिक उत्क्रान्ति के क्रम के विचार के साथ ही उसके आरम्भ का तथा समाप्ति का विचार आता है । उसका आरम्भ उसकी पूर्वसीमा और उसकी समाप्ति उसकी उत्तरसीमा है । पूर्वसीमा से लेकर उत्तरसीमा तक का विकास का वृद्धिक्रम ही आध्यात्मिक उत्क्रान्तिक्रम की मर्यादा है । उसके पूर्व की स्थिति आध्यात्मिक अविकास अथवा प्राथमिक ससारदशा है और उसके बाद की स्थिति मोक्ष अथवा आध्यात्मिक विकासक्रम की पूर्णता है। इस प्रकार काल की दृष्टि से सक्षेप में आत्मा की अवस्था तीन भागो मे विभक्त हो जाती है . ( अ) आध्यात्मिक अविकास, ( ब ) आध्यात्मिक विकासक्रम, (क) मोक्ष |
(अ) आत्मा स्थायी सुख और पूर्ण ज्ञान प्राप्त करना चाहती है तथा दुख एव अज्ञान उसे तनिक भी पसन्द नही, फिर भी वह दु ख और अज्ञान के भवर मे पड़ी हुई है इसका क्या कारण ? यह एक गूढ प्रश्न है । परन्तु इसका उत्तर तत्त्वज्ञो को प्राप्त हुआ है । वह यह कि 'सुख एव ज्ञान प्राप्त करने की स्वाभाविक वृत्ति के कारण आत्मा का पूर्णानन्द और पूर्णज्ञानमय स्वरूप सिद्ध होता है, क्योकि पूर्णानन्द और पूर्णज्ञान जब तक प्राप्त न करे तब तक वह सन्तोष प्राप्त नही कर सकती, और फिर भी उस पर अज्ञान