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________________ ( २ ) विवाहविधि के विषय में प्रकरण के प्रकरण लिखे ? विवाह पूर्णब्रह्मचर्य का विरोधी है, ब्रह्मचर्याणुव्रत का वाधक या व्य. भिचार का साधक नहीं है। अगर यह बात मानली जाय तो अकेला विधवाविवाह ही क्या, कुमारी विवाह भी व्यभिचार कहलायगा। अगर व्यभिचार होने पर भी कुमारी विवाह विधेय है नो विधवाविवाह भी विधेय है। आक्षेप (8)-पुरुप इसी भव से मोक्ष जा सकते हैं, पुरुषों के उच्च सस्थान संहनन होते है, उनके शिश्न मूछे होती है । स्त्रियों में ये बातें नहीं हैं, इसलिये उन्हें पुरुषों के समान पुनर्विवाह का अधिकार नहीं है । लक्षण, प्राकृति, स्वभाव, शक्ति की अपेक्षा भी महान् अन्तर है। समाधान-आजकल के पुरुष न नो मोक्ष जा सकते हैं, न स्त्रियों से अधिक सहनन रख सकते है। इसलिये इन्हें भी पुनर्विवाह का अधिकार नहीं होना चाहिये । संस्थान तो स्त्रियों के भी पुरुषों के समान सभी हो सकते है (देखो गोम्मटसार कर्मकांड)। पुरुषों के शिश्न मूछे होती हैं और स्त्रियों के योनि और स्तन होते हैं । आक्षेपक के समान कोई यह भी कह सकता है कि पुरुषों को पुनर्विवाह का अधिकार नहीं है, क्योंकि उनके योनि और स्तन नहीं होते। लिङ्ग और मूछे ऐसी चीज नहीं हैं जिनके ऊपर पुनर्विवाह की छाप खुदी रहती हो । देवों के और तीर्थंकरादिको के मूछे नहीं होती, फिर भी उनके अधिकार नहीं छिनते । दाढ़ी के बाल और में छे तो सौन्दर्य की विघातक और उतने स्थान की मलीनता का कारण हैं। उनसे विशेषाधिकार मिलने का क्या सम्बन्ध ? खैर, विषमता को लेकर स्त्रियों के अधिकार नहीं छीने जा सकते । संसार का प्रत्येक व्यक्ति विषम है । सूक्ष्म विषमता को अलग करदें तो स्थूल विषमता भी बहुत हैं । परन्तु विषमता
SR No.010349
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year1931
Total Pages247
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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