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________________ ( १) स्वम्त्री बन गई है। खैर ! अगर आक्षेपक की यही मंशा है कि कुमारी को परस्त्री न माना जाय, क्योंकि वर्तमान में वह किमी की स्त्री नहीं है-भावी स्त्री है, तो इनमें भी हमें कोई ऐतगज नहीं है। परन्तु ऐसी हालत में विधवा मी परस्त्री न कहला. यगी, क्योंकि वर्तमान में वह किनी की स्त्री नहीं है । जिसकी थी वह तो मर गया, इसलिये वह तो भृत-स्त्री हैं। इसलिये कुमारी के समान वह खम्त्री बनाई जा सकती है। श्राक्षेप (अ)-विवाह किसी अपेक्षा से व्यभिचार को दूर करने का कारण कहा भी जा सकता है। किन्तु कहा जा सकता है विवाह ही। विधवा सम्बन्ध भी विवाह सना ही नहीं। समाधान-शास्त्रों में जो विवाह का लक्षण किया गया है यह विधवाविवाह में जाता है। यह बात हम प्रथम प्रश्न में कन्या शब्द का अर्थ करते समय लिख पाये है। लोक में भी विधवाविवाह शब्द का प्रचार है, इसलिये संज्ञा का प्रश्न निरर्थक है । इम आक्षेप को लिखने की जरूरत ही नहीं थी, परन्तु यह इसलिये लिख दिया है कि श्राक्षेपक ने यहाँ पर विवाह को व्यभिचार दूर करने का कारण मान लिया है । इसलिये विधवाविवाह व्यभिचार नहीं है। आक्षेप (2)-विवाह तो व्यभिचार की ओर रुजू कगने वाला है, अन्यथा भगवान महावीर को क्या सूझी थी जो उन्हों ने ब्रह्मचर्यव्रत पाला? समाधान-विवाह तो व्यभिचार की ओर रुजू कराने वाला नहीं है, अन्यथा श्रीऋषमटेव श्रादि तीथंकरों को क्या सूझी थी जो विवाह कगया ? सभी तीर्थंकरों को क्या सूझी थी जो ब्रह्मचर्याणुव्रत का उपदेश दिया? प्राचार्यों को क्या सूझी थी कि पुगणों को विवाह की घटनाओं से भर दिया और
SR No.010349
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year1931
Total Pages247
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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