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पन्द्रहवाँ प्रश्न |
१२, १३, १४ र १५ प्रश्न बालविवाहचिपक है । इस में वालविवाह का नाजायज विवाह सिद्ध किया गया है। जो लोग सम्यग्दृष्टि है तो विधवाविवाह के विरोधी क्यों होंगे, परन्तु जो लोग मिथ्यात्व के कारण से विधवाविवाहा ठीक नहीं समझते उन्हें चाहिये कि बालविधवा कहलाती हुई स्त्रियों के विवाह को स्वीकार करें क्योंकि बालविधवा वास्तविक विधवा नहीं है। पकवार न्यायशास्त्र के एक सुप्र सिद्ध आचार्य ने ( जो कि दिगम्बर जैन कहलाने पर भी तीव्र मिथ्यात्व के उदयसे या अन्य किसी लौकिक कारणले विधवाfare के विरोधी बन गये हैं) कहा था कि तुम बड़े मूर्ख हो जो बालविधवाओं को भी विधवा कहते हो। इसी तरह एकवार गोपालदास जी के मुख्य शिष्य और धर्मशास्त्र के बडे भारी विद्वान् कहलाने वाले परिडन जी ने भी कहा था कि 'अक्षतयोनि विधवाओं के विवाह में ना कोई दोष नहीं है' | यहाँ पर भी वालविवाह के विषय में चम्पतराय जी साहब ने जो तनकियों उठाई है उनके उत्तरों से यही बात साबित होती है । विवाह का सम्बन्ध ब्रह्मचर्याशुवत से है। जिनका चाल्यावस्था में विवाह होगया वे ब्रह्मचर्याशुव्रत वाली कैसे कहला सकती हैं ? इसलिये उनका विवाहाधिकार तो कुमारी के समान ही रक्षित है । अगर वे महावून या सप्तम प्रतिमा धारण करें तब तो ठीक, नहीं तो उन्हें विवाह कर लेना चाहिये । यद्यपि हम कह चुके हैं कि बालविधवाएँ विधवा नहीं हैं परन्तु कोई विधवा हो या विधुर, कुमार हो या कुमारी, अगर वह ब्रह्मचर्य प्रतिमा या महाव्रत ग्रहण नहीं करता तो विवाह की इच्छा करने पर विवाह कर लेना अधर्म नहीं है।