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________________ ( १५७) कहा था कि "सम्कार से हमारे ऊपर प्रभाव पड़ता है और वह प्रभाव प्रायः दमरों के द्वाग डाला जाता है, परन्तु चून दूमगे के द्वारा नहीं लिया जा सकता। संस्कार नो पात्र में श्रद्धा, समझ और त्याग के बिना भी डाले जासकते है परन्तु वन में इन तीनों को अत्यन्त आवश्यकता रहनी है" । जब चूत और संस्कार का भेद इतना स्पष्ट है नव बाल्यावस्था में स. कारो अस्तित्व बनलाकर वन का अस्तित्व बतलाना मूर्यता और धोखा नहीं ना क्या है ? सरकार श्रावश्यक भले ही हो परन्तु वे वन के भेद नहीं हैं। आक्षेप(छ)-शुभ कार्य दसगे के द्वारा भी कराये जा सकते हैं, और उनका फल भी पूरा पूरी होता है । शुभ कार्य में जयग्न प्रवृत्ति कगना अधर्म नहीं है। हाँ, यदि कोई विधवा कह कि मैं नो वैधव्य नहीं लूंगी तब उस पर जबर्दस्तो वैधव्य का 'टीका' मढ़ना भी उचित नहीं है । यदि कोई विधवा कहे कि मेग विवाह ग दो नो वह भी श्रागमविरुद्ध है। समाधान-शुभ कार्य कराये जा सकते है । जो करा. यगा उसे कदाचित् पुण्ययन्ध भी हो सकता है। परन्तु इससे यह कहाँ सिद्ध हुआ कि जिमसे क्रिया कराई जा रही है वह भावपूर्वक नहीं कर रहा है। यदि कोई कगना है और कोई भावपूर्वक करता है तो उसे पुरायबन्ध क्यों न होगा ? परन्तु यह पुग्यबन्ध भावपूर्वकना का है। ऊपर भी इस प्रश्नका उत्तर दिया जा चुका है। आप स्वीकार करते है कि अनिच्छापूर्वक वैधव्य का टीका न मढना चाहिये । सुधारक भी इससे ज्यादा और क्या कहते हैं ? जब उसे वैधव्य का टोका नहीं लगा तो वह आगमविरुद्ध क्यों ?
SR No.010349
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year1931
Total Pages247
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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