________________
-८६ -
[१५] सज्मतिः सग्दहित्वं च पारिवाज्यं सुरेन्द्रता । साम्राज्यं परमाईन्त्यं परनिर्वाणमित्यपि ॥
[श्री श्रा० पु० पर्व ३८ श्लोक ८४] अर्थ-सज्जाति, सग्ड हस्थता, पारिवाज्य, सुरेन्द्रता, साम्राज्य, सर्वोत्कृष्ट प्रार्हन्त्य और निर्माण ये साव परमस्थान हैं। ___ सज्जाति का अर्थ किया गया है-माता और पिता की कुल शुद्धि । कुल शुद्धि, दोनों की सजातीयता से ही रह सकती है विजातीयवा मे नहीं।
जाति पानि बिरोधी सज्जन इस सजातित्व से जाति पद का अपक्षा कैसे करेंगे?
इत्यादि और मी अनेकानेक प्रमाणों मे शास्त्र भरे हैं यदि सबका उल्लेख किया जाय तो बहुत विस्तार हो जाय। हमें किसी भी कार्य को करते समय उसका जैन श्रागम से भी समन्वय करना चाहिये : यदि आगम मे समन्बय किये बिना थवा तदा कुछ भी काम करते रहें तो हमारी संस्कृति नष्ट हो जायगी। संस्कृति का मूल स्त्रोत आगम ही है। यह पागम की अवहेलना होती रही और केवल विषय भोगों की अनर्गल प्रवृत्ति बढ़ाई जाती रही तो चाहे वर्तमान मे वह चीज अच्छी लगे परन्तु परिणाम उसका भयकर ही होगा। जिस आगम के हम अनुयायी हैं उसकी मान्यता करना भी हमारा कर्तव्य होना चाहिये ।