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हैं । आपने जरा से संकेत पर ही इस आर्थिक भार के उठाने की स्वीकृति दी, जिसका मुख्य कारण इस पुस्तक के विद्वान् लेखक की धर्म-लोक-प्रियता ही है। यह शास्त्रीजी की मार्मिक और प्रभावक लेखन शैली का ही प्रभाव है कि आर्थिक समस्या को हल करने के लिए लोग आगे से भागे ते रहते हैं। उक्त सज्जनों का साभार धन्यवाद माने बिना नहीं रहा जा सकता। मैं चाहता था कि ऐसे सामयिक, सात्विक और विज्ञ दाताओं के चित्र भी प्रकाशित किये जायं परन्तु बहुत प्रयत्न करने पर भी मैं सफल न हो सका।
जाति भेद कीमौलिकता के संबंध में जिनकी विचार धारा भ्रान्त है वे तथा अन्य सजन भी इस पुस्तक को आद्योपांत पढ़े और दूसरों को पढ़ाकर लेखक के प्रयास को सफल करें । सच्चे निदान के बिना रोग का इलाज नहीं होता। आज हमारे देश पर जो विपत्ति और संकट के बादल हैं उनका निदान ठीकठीक न होकर ग़लत हो रहा है जिसी से रोग घटने के स्थान में बढता है । लेखक ने रोग का सही निदान किया है। देश का सुन्दर भविष्य होने पर ही उसकी ओर लक्ष्य जा सकता है।
पुस्तक प्रत्येक दृष्टि से पठनीय और मननीय है।
सुजानगढ [राजस्थान पौष शुक्ला पूर्णिमा विक्रम संवत्
२००७
कृतज्ञ मिश्रीलाल जैन, शास्त्री
न्यायतीर्थ