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जैनादि भी लोहे, वस्त्र सीने आदि का काम करते हैं। दुकानों पर साइननोर्ड भी रखते हैं लोह के व्यापारी, टेलरिंग हाउस आदि, परन्तु वे लुहार दर्जी आदि जातियों के नहीं हैं। वास्तव में बात यह है कि कुछ लोगों ने एक व्यवसाय कर लिया और दूसरे लोग उन्हें उसी व्यवसाय के करने वाले के नाम से पुकारने लगे। संभव है कि कुछ समय बाद उस वर्ग को जाति का रूप भी दे दिया गया हो ? यह अवश्य है कि जातियों के नाम आचरण से नहीं और कुछ का आचरण से भी पड़ गया हो तो असंभव नहीं परन्तु जितनी भी जातियां हैं उनके नाम आचरण से ही हों, यह समझ में आने लायक बात नहीं। जाति का अनादित्व। ___ जातीयता अनादि हे । जीव अनादि है तो कर्म भी अनादि है । क्यों कि उसके साथ निरन्तर रहने वाला जाति एक नाम कर्म है । जाति नामक नाम कर्म के हजारों लाखों करोडों भेद हैं इसलिए वे भी अनादि हैं इसीलिये प्रातः स्मरणोय पूज्यपाद आचायवर्य श्री सोमदेव सूरिने अपने यशस्तिलक चम्पू के अष्टमाश्वास के चौतीसवें कल्प में कहा है कि
जातयोऽनादयः सर्वास्तक्रियापि तथाविधा।
श्रुतिः शास्त्रांतरं वास्तु प्रमाणं कात्र न क्षतिः ।। भावार्थ-संपूर्ण जातियां अनादि हैं और उनकी क्रियाएं भीजैसी है वैसी ही हैं, या रहें । यदि इस बात मे वेद और