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________________ ६२ जैनधर्म ने कालाचूरि साम्राज्यके अन्दर जैनोंके विनाशमें बहुत बड़ी सहायता की उनके नामोंके चारों ओर अनेक कपोलकल्पित कथाएँ जुट गईं । ऐसी एक कथा जो उस समयके शिलालेख में अंकित है यहाँ दी जाती है शिव और पार्वती एक शैव सन्तके साथ कैलास पर्वतपर विचर रहे थे। इतने में नारद आये, उन्होंने जैनों और बौद्धोंकी बढ़ती हुई शक्तिकी सूचना दी। शिवने वीरभद्रको आज्ञा दी कि तुम संसार में जाकर मानव योनिमें जन्म लो और इन धर्मोंको नष्ट करो | आज्ञानुसार वीरभद्रने पुरुषोत्तम पट्ट नामके व्यक्तिको स्वप्न दिया कि मैं तुम्हारे घरमें पुत्ररूपमें जन्म लूँगा । स्वप्न सत्य हुआ । बालकका नाम राम रखा गया और शैवके रूपमें उसका लालन पालन हुआ । शिवका भक्त होनेसे उसे एकान्तद रामैया कहते थे। किंवदन्तीके अनुसार यह रामैय्या ही उस देशमें जैनधर्मके विनाशके लिए उत्तरदायी है । कथामें लिखा है कि एक दिन रामैया शिवकी पूजा करता था । उस समय जैनोंने उसे चैलेंज दिया कि वह अपने देवताका देवत्व सिद्ध करे । रामैयाने चैलेंज स्वीकार कर लिया । यह तय हुआ कि रामैया अपना सिर काटकर फिर जोड़ दे । यदि वह ऐसा कर सका तो जैनोंने अपने मन्दिर खाली करके उस देशको छोड़ देनेका वचन दिया । रामैयाने सिर काटकर फिर जोड़ लिया और जैनोंसे अपना वादा पूरा करनेके लिए कहा | जैनोंने अस्वीकार कर दिया। यह सुनते ही रामैयाने जैनोंके मन्दिरोंको नष्ट-भ्रट करना प्रारम्भ किया। जैनोंने विज्जलसे जाकर शिकायत की। विज्जल शैवोंपर बहुत क्रुद्ध हुआ । किन्तु रामैयाने विज्जलको अपना चमत्कार दिखाकर शैव बना लिया । विज्जलने जैनोंको आदेश दिया कि वे शैवोंके साथ शान्तिपूर्वक बर्ताव करें। १. स्टडीज़ इन सा० इ० जैनिज्म, पृ० ११३ ।
SR No.010347
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1966
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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