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इतिहास
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माना जाता है। चित्तौड़का प्रसिद्ध प्राचीन कीर्तिस्तम्भ जैनोंका ही निर्माण कराया हुआ है । उदयपुर राज्यमें केशरियानाथ जैनोंका प्राचीन पवित्र स्थान है जिसकी पूजा वन्दना जैनेतर भी करते हैं । 'राजपूतानेमें जैनोंने राजत्व, मंत्रित्व और सेना - पतित्वका कार्य जिस चतुराई और कौशलसे किया है उससे उन्हें राजपूतानेके इतिहासमें अमर नाम प्राप्त है। राजपूतानेने ही दुढारी हिन्दी कुछ ऐसे धार्मिक जैन विद्वानोंको पैदा किया जिन्होंने संस्कृत और प्राकृत भाषाके ग्रन्थोंपर हिन्दीमें टीकाएँ लिखकर जनताका भारी उपकार किया। राजपूताने के जैसलमेर, जयपुर, नागौद, आमेर आदि स्थानों में प्राचीन शास्त्र भडार हैं
६. मध्यप्रान्त में जैनधर्म
मध्यप्रान्तका सबसे बड़ा राजवंश कलचूरि वंश था जिसका प्राबल्य आठवीं नौवीं शताब्दी में बहुत बढ़ा |
ये कलचुरिनरेश प्रारम्भ में जैनधर्म के पोपक थे। कुछ शिलालेखों में ऐसा उल्लेख मिलता है कि कलभ्र लोगोंने तमिल देशपर चढ़ाई की थी और वहाँके राजाओंको परास्त करके अपना राज्य जमाया था । प्रोफेसर रामस्वामी आयंगरने सिद्ध किया है कि ये कलवंशी राजा जैनधर्मके पक्के अनुयायी थे । इनके नमिल देशमें पहुँचनेसे वहाँ जैनधर्मकी बड़ी उन्नति हुई। इन कलको कलचुरिवंशकी शाखा समझा जाता है । इनके वंशज नागपुरके आसपास अब भी मौजूद हैं जो कलार कहलाते हैं । ये कभी जैन थे | मध्यप्रान्तके कलचुरि-नरेश जैनधर्मक पोषक थे इसका एक प्रमाण यह भी है कि इनका राष्ट्रकूट नरेशोंसे घनिष्ठ सम्बन्ध था । दोनों राजवंशोंमें अनेक विवाह सम्वन्ध हुए 汁 और राष्ट्रकूटनरेश जैनधर्मके उपासक थे ।
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१. 'राजपूताने के जैन वीर' ।
२. Studies in South Indian Jainism P. 53-56.