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इतिहास
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दिन हुआ था। इस दिन भारतवर्ष में महावीरकी जयन्ती बड़ी धूमसे मनाई जाती है । महावीर सचमुच में महावीर थे । एक बार बचपन में ये अन्य बालकोंके साथ खेल रहे थे । इतने में अचानक एक सर्प कहींसे आ गया और इनकी ओर झपटा। अन्य बालक तो डरकर भाग गये किन्तु महावीरने उसे निर्मद कर दिया । महावीर जन्मसे ही विशेष ज्ञानी थे। एक बार एक मुनि उनको देखनेके लिये आये और उनके देखते ही मुनिके चित्तमें जो शास्त्रीय शंकाएँ थीं वे दूर हो गई। जब महावीर बड़े हुए तो उनके विवाहका प्रश्न उपस्थित हुआ, किन्तु महावीरका चित्त तो किसी अन्य ओर ही लगा हुआ था । उस समय यज्ञादिकका बहुत जोर था और यज्ञोंमें पशु - बलिदान बहुतायतसे होता था । बेचारे मूक पशु धर्मके नामपर बलिदान कर दिये जाते थे और 'वैदिकी हिंसा - हिंसा न भवति' की व्यव स्था दे दी जाती थी । करुणासागर महावीरके कानोंतक भी उन मूक पशुओंकी चीत्कार पहुँची और राजपुत्र महावीरका हृदय उनकी रक्षाके लिये तड़प उठा । धर्मके नामपर किये जानेवाले किसी भी कृत्यका विरोध कितना दुष्कर है यह बतलाने की आवश्यकता नहीं । किन्तु महावीर तो महावीर ही थे । ३० वर्षकी उम्र में उन्होंने घर छोड़कर वनका मार्ग लिया और भगवान ऋषभदेवकी ही तरह प्रत्रज्या लेकर ध्यानस्थ हो गये । महावीर के जन्म आदिका वर्णन करनेवाली कुछ प्राचीन गाथाएँ मिलती हैं जिनका भाव इस प्रकार है
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१ "सुरमहिदोच्चदकप्पे भोगं दिव्वाणुभागभणभूदो | पुप्फूत्तरणामादो विमाणदो जो चुदो संतो ॥
बाहत्तरवासाणि य थो विहीणाणि आसाढजो पक्खे
छटठीए
कुण्डपुरपुरंवरिस्सरसिद्धत्थक्खत्तियस्स
लद्धपरमाऊ ।
जोणिमुवयादो ॥
णाहकुले । देवीसदसेवमाणाए ।
तिसिलाए
देवीए अच्छिता णवमासे अट्ठ य दिवसे चइत्तसियपक्खे |