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________________ ३७० जैनधर्म बातें तो अध्यात्मकी करते थे और समर्थन वैदिक क्रियाकाण्डका ही किये जाते थे, जिसके विरोधी बराबर मौजूद थे। फलतः विरोध बढ़ने लगा। इसी समयके लगभग भगवान पार्श्वनाथ हुए। उनके उपदेशों ने भी अपना असर दिखलाया । पार्श्वनाथके लगभग २०० वर्षके बाद ही विहारमें महावीर और बुद्धका जन्म हुआ। वैदिकधर्ममें विचारशास्त्र उच्च विद्वानोंकी ही वस्तु बनी हुई थी परन्तु इस युगमें इसका प्रचार साधारण जनतामें किया जाने लगा। भगवान पार्श्वनाथने ७० वर्पतक स्थान स्थानपर विहार करके जनसाधारणमें धर्मोपदेश दिया । इसीका अनुसरण महावीर तथा बुद्धने अवान्तरकालमें किया । अपने आध्यात्मिक विचारोंको व्यावहारिक रूप देनेकी तथा अपने विचारोंके अनुरूप जीवन यापन करनेकी प्रवृत्तिकी ओर भी इसी युगमें विशेष लक्ष्य दिया गया क्योंकि उक्त महा. पुरुषोंने ऐसा ही किया था। वैदिक युगमें इन्द्र वरुण आदिको ही देवताके रूपमें पूजा जाता था, किन्तु उक्त धर्मो में मनुष्यको उन्नत बनाकर उसमें देवत्वकी प्रतिष्ठा करके उसकी पूजा की जाती थी। विरोधियोंके इन सिद्धान्तोंने वैदिक धर्मको स्थितिको एकदम डाँवाडोल कर दिया था। उसको कायम रखनेके लिये फिर कुछ नई बातोंको अपनानेकी वैसी ही आवश्यकता प्रतीत हुई जैसी आवश्यकता उपनिषदोंकी रचना होनेसे पूर्व प्रतीत हुई थी। इसी कालमें रामायण और महाभारतका उदय हुआ, १ सर राधाकृष्णन् लिखते हैं-"जब जनताकी आध्यात्मिक चेतना उपनिषदोंके कमजोर विचारसे, या वेदोंके दिखावटी देवताओंसे तथा जैनों और बौद्धोंके नैतिक सिद्धान्तोंके संदिग्ध आदर्शवादसे सन्तुष्ट नहीं हो सकी तो पुननिर्माणने एक धर्मको जन्म दिया, जो उतना नियम-बद्ध नहीं था तथा उपनिषदोंके धर्मसे अधिक सन्तोषप्रद था। उसने एक संदिग्ध और शुष्क ईश्वरके बदले में एक जीवित मानवीय परमात्मा दिया। भगवद्गीता, जिसमें कृष्ण विष्णुके अवतार तथा उपनिषदोंके परब्रह्म माने गये हैं, पंच
SR No.010347
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1966
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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