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________________ विविध ३४१ जैनोंके तीर्थोकी संख्या बहुत है । उन सबको बतला सकना शक्य नहीं है, क्योंकि जैन धर्मकी अवनतिके कारण अनेक प्राचीन तीर्थ आज विस्मृत हो चुके हैं, अनेक स्थान दूसरोंके द्वारा अपनाये जा चुके हैं। कई प्रसिद्ध स्थानोंपर जैनमूर्तियाँ दूसरे देवताओंके रूपमें पूजी जाती हैं। उदाहरणके लिये प्रख्यात बद्रीनाथ तीर्थके मन्दिर में भगवान पार्श्वनाथकी मूर्ति बद्रीविशालके रूपमें तमाम हिन्दू यात्रियोंके द्वारा पूजी जाती है। उसपर चन्दनका मोटा लेप थोपकर तथा हाथ वगैरह लगाकर उसका रूप बदल दिया जाता है, इसी लिये जब प्रातः काल शृङ्गार किया जाता है, तो किसीको देखने नहीं दिया जाता। क्या आश्चर्य हैं जो कभी वह जैन मन्दिर रहा हो और शंकराचार्यके द्वारा इस रूपमें कर दिया गया हो, जैसा कि वहाँ के पुराने बूढ़ोंके मुँह से सुना जाता है । अस्तु, जैनधर्मके दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों ही सम्प्रदायोंके तीर्थस्थान हैं। उनमें बहुतसे ऐसे हैं जिन्हें दोनों ही मानते पूजते हैं । और बहुतसे ऐसे हैं जिन्हें या तो दिगम्बर ही मानते पूजते हैं या केवल श्वेताम्बर; अथवा एक सम्प्रदाय एक स्थानमें मानता है तो दूसरा दूसरे स्थानमें । कैलाश, चम्पापुर, पावापुर, गिरनार, शत्रुञ्जय और सम्मेद शिखर आदि ऐसे तीर्थ हैं जिनको दोनों ही सम्प्रदाय मानते हैं। गजपन्था, तुङ्गी, पावागिरि, द्रोणगिरि, मेढगिरि, कुंथुगिरि, सिद्धवरकूट, बड़बानी आदि तीर्थ ऐसे हैं, जिन्हें केवल दिगम्वर सम्प्रदाय ही मानता है। और इसी तरह आबूगिरि, शंखेश्वर आदि कुछ ऐसे तीर्थ हैं जिन्हें श्वेताम्बर सम्प्रदाय ही मानता है। यहाँ प्रसिद्ध प्रसिद्ध तीर्थक्षेत्रोंका सामान्य परिचय प्रान्तवार कराया जाता है बिहार प्रदेश सम्मेद शिखर-हजारीबाग जिलेमें जैनोंका यह एक अतिप्रसिद्ध और अत्यन्त पूज्य सिद्धक्षेत्र है। इसे दिगम्बर और
SR No.010347
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1966
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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