________________
विविध
३३५
मनाया हो नहीं जाता। रह जाता है जैन सम्प्रदाय । इस सम्प्रदाय में शक सं० ७०५ ( वि० सं० ८४० ) का रचा हुआ हरिवंश पुराण है । उसमें भगवान् महावीरके निर्वाणका वर्णन करते हुए लिखा है- "महावीर भगवान् भव्यजीवोंको उपदेश देते हुए पावानगरी में पधारे, और वहाँके एक मनोहर उद्यानमें चतुर्थकालमें तीन वर्ष साढ़े आठ मास बाकी रह जानेपर कार्तिकी अमावस्या के प्रभातकालीन सन्ध्याके समय, योगका निरोध करके कर्मोंका नाश करके मुक्तिको प्राप्त हुए । चारों प्रकारके देवताओंने आकर उनकी पूजा की और दीपक जलाये । उस समय उन दीपकोंके प्रकाशसे पावानगरीका आकाश प्रदीपित हो रहा था । उसी समयसे भक्त लोग जिनेश्वरकी पूजा करनेके लिये भारतवर्ष में प्रति वर्ष उनके निर्वाण दिवसके उपलक्षमें दीपावली मनाते हैं ।”
जैनधर्मकी आजकी स्थितिको देखते हुए कोई इस बातपर विश्वास नहीं कर सकता कि महावीर निर्वाणके उपलक्ष्यमें दीपावली मनाई जा सकती है । किन्तु उस समयके प्रसिद्ध प्रसिद्ध राजघरानोंके साथ महावीरका जो कुलक्रमागत सम्बन्ध था तथा उनपर जो प्रभाव था उसे देखते हुए ऐसा हो सकना
१. "जिनेन्द्रवीरोऽपि विबोध्य संततं समंततो भव्यसमूहसंतति । प्रपद्य पावानगरीं गरीयसीं मनोहोद्यानवने तदीयके ॥ १५ ॥ चतुर्थकाले ऽर्ध चतुर्थमासकै विहीनताविश्वचतुरब्दशेषके । सकार्तिके स्वातिषु कृष्णभूतसु प्रभातसन्ध्यासमये स्वभावतः || १६ | अघातिकर्माणि निरुद्धयोगको विधूय घातों धनबद्धबंधनं । विबन्धनस्थानमवाप शंकरो निरन्तरायोरुसुखानुबन्धम् ॥१७॥ ज्वलत्प्रदीपालिकया प्रवृद्धया सुरासुरैः दीपितया प्रदीप्तया । तदा स्म पावानगरी समंततः प्रदीपिताकाशतला प्रकाशते ॥ १९ ॥ ततस्तु लोकः प्रतिवर्षमादरात् प्रसिद्धदीपालिकयात्र भारते । समुद्यतः पूजयितुं जिनेश्वरं जिनेन्द्रनिर्वाण विभूतिभक्तिभाक् ॥ २० ॥