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________________ जैन कला और पुरातत्त्व २८३ किसी जैन तीर्थकरकी होनी चाहिये। उस समय गुजरातमें वैष्णवधर्मका नामोनिशान भी देखनेको नहीं मिलता। तथा मुसलमानोंके बाद उस मन्दिरका जीर्णोद्धार राजा भीमदेव, सिद्धराज और कुमारपालने कराया, जो सब जैन थे। इन सब बातोंपरसे फर्ग्युसन सा० ने यह निष्कर्ष निकाला है कि सोमनाथका मन्दिर जैन मन्दिर था। कलाकी तरह पुरातत्त्व शब्दका अर्थ भी बहुत व्यापक है। इतिहास आदिके निर्माणमें जिन साधनोंकी आवश्यकता होती है वे सभी पुरातत्त्वमें गर्भित हैं। अतः प्राचीन मन्दिरों, मूर्तियों, गुफाओं और स्तम्भोंकी तरह प्राचीन शिलालेखों और शास्त्रोंको भी पुरातत्त्वमें सम्मिलित किया जा सकता है। - श्रवणबेलगोला (मैसूर) में बहुतसे शिलालेख अंकित हैं। मैसूर पुरातत्त्व विभागके तत्कालीन अधिकारी लूइस राइस साहबने श्रवणबेलगोलाके १४४ शिलालेखोंका संग्रह प्रकाशित किया था। इसकी भूमिकामें उन्होंने इन लेखोंके ऐतिहासिक महत्त्वकी ओर विद्वानोंका ध्यान आकर्षित किया और चन्द्रगुप्त मौर्य तथा भद्रबाहुके पारस्परिक सम्बन्धका विवेचन कर उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला कि सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्यने भद्रबाहुसे जिनदीक्षा ली थी तथा शि० लेख नं०१ उन्हींका स्मारक है। ____उक्त संग्रहका दूसरा संस्करण रावबहादुर आर० नरसिंहाचायने रचकर प्रकाशित किया। इसमें उन्होंने ५०० शिलालेखोंका संग्रह किया है व भूमिकामें उनके ऐतिहासिक महत्त्वका विवेचन किया है। किन्तु ये संग्रह कनड़ी व रोमन लिपिमें हैं अतः उक्त लेखोंका एक देवनागरी संस्करण प्रो० हीरालाल तथा श्रीविजयमूर्ति आदिसे सम्पादित कराके श्री नाथूरामजी प्रेमीने प्रकाशित किया है। इसी तरह आबू देवगढ़ आदिमें भी अनेक शिलालेख मूर्तिलेख वगैरह पाये जाते हैं। भारतीय इतिहासके लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण खण्डगिरि उदयगिरिसे प्राप्त जैन शिलालेखकी चर्चा पहले की जा चुकी है।
SR No.010347
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1966
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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