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सिद्धान्त
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कार पृथिवी, जल, तेज और वायुको जुदा जुदा द्रव्य मानते हैं; क्योंकि उनकी मान्यताके अनुसार पृथिवीमें रूप, रस, गन्ध और स्पर्श चारों गुण पाये जाते हैं, जलमें गन्धके सिवा शेष तीन ही गुण पाये जाते हैं, तेजमें गन्ध और रसके सिवा शेष दो ही गुण पाये जाते हैं और वायुमें केवल एक स्पर्श ही गुण पाया जाता है । अत: चारोंके परमाणु जुदे जुड़े हैं । अर्थात् पृथिवीके परमाणु जुड़े हैं, जलके परमाणु जुदे हैं, तेजके परमाणु जुड़े हैं और वायुके परमाणु जुदे हैं। अतः ये चारों द्रव्य जुदे जुड़े हैं । किन्तु जैनदर्शनका कहना है कि सब परमाणु एकजातीय हो हैं और उन सभीमें चारों गुण पाये जाते हैं । किन्तु उनसे बने हुए द्रव्योंमें जो किसी-किसी गुणकी प्रतीत नहीं होती, उसका कारण उन गुणोंका अभिव्यक्त न हो सकना ही है. जैसे, पृथिवीमें जलका सिंचन करनेसे गन्ध गुण व्यक्त होता है इसलिये उसे केवल पृथ्वीका ही गुण नहीं माना जा सकता। आँवला खाकर पानी पीनेसे पानीका स्वाद मीठा लगता है, किन्तु वह स्वाद केवल पानीका ही नहीं है, आँवलेका स्वाद भी उसमें सम्मिलित है । इसी प्रकार अन्यत्र भी जानना चाहिये | इसके सिवा जलसे मोती उत्पन्न होता है जो पार्थिव माना जाता है, जंगलमें बाँसोंकी रगड़ अग्नि उत्पन्न हो जाती है, जौके खानेसे पेट में वायु उत्पन्न होती है। इससे सिद्ध है कि पृथ्वी, जल, अग्नि और वायुके परमाणुओंमें भेद नहीं हैं। जो कुछ भेद है, वह केवल परिणमनका भेद है। अतः सभी में स्पर्शादि चारों गुण मानने चाहियें। और इसीलिये पृथ्वी आदि चार द्रव्य नहीं हैं किन्तु एक द्रव्य है । इसीलिये कहा है
आदेममेत्त मुत्तो धादुचदुक्कस्स कारणं जो दु ।
सो ओ परमाणू परिणामगुणो सयमसहो ॥ ७८ ॥ - पंचास्ति ० अर्थात् — जो पृथ्वी, जल, अग्नि और वायुका कारण है वह परमाणु है । परमाणु द्रव्य है उसमें स्पर्श, रस, गन्ध और रूप ये चारों गुण पाये जाते हैं । इसी कारणसे वह