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जैनदार्शनिक साहित्य इस तरह जनदर्शन ग्रन्थोंका विशाल कोशागार है । इस सूचीमें संस्कृत ग्रन्थोंका हो प्रमुखरूपसे उल्लेख किया है। कन्नड़ भाषामें भी अनेक दर्शनग्रन्थोंको टीकाएं पाई जाती हैं। इन सभी ग्रन्थोंमें जैनाचार्योंने अनेकान्तदृष्टिसे वस्तुतत्त्वका निरूपण किया है, और प्रत्येक वादका खंडन करके भी उनका नयदृष्टि से समन्वय किया है। अनेक अजैनग्रन्थोंकी टोकाएं भी जैनाचार्योंने लिखी हैं, वे उन ग्रन्थोंके हार्दको बड़ी सूक्ष्मतासे स्पष्ट करती है । इति ।
हिन्दू विश्वविद्यालय
वाराणसी २०१९५३
-महेन्द्रकुमार न्यायाचार्य