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जैनदशन
करते समय आजतक उपलब्ध समग्र साहित्यको ध्यान में रखकर ही काल
विभाग इस प्रकार करना होगा' ।
१. सिद्धान्त आगमकाल
२. अनेकान्त स्थापनकाल
३. प्रमाणव्यवस्था युग ४. नवीन
' न्याययुग
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वि० ६वीं शती तक
वि० ३री से ८वीं तक
वि० ८वीं से १७वीं तक
वि० १८वीं से
१. सिद्धान्त आगमकाल
दिगम्बर सिद्धान्त-ग्रन्थोंमे पट्खंडागम, महाबंध कषायप्राभृत और कुन्दकुन्दाचार्यके पंचास्तिकाय, प्रवचनसार, समयसार आदि मुख्य है । षट्खंडागमके कर्ता आचार्य पुष्पदन्त और भूतबलि है और कषायप्राभृतके रचयिता गुणधर आचार्य | आचार्य यतिवृषभने त्रिलोकप्रज्ञप्ति में ( गाथा ६६ से८२ ) भगवान् महावीरके निर्वाणके बादकी आचार्य परम्परा और उसकी ६८३ वर्षको कालगणना दी है।
१. युगोंका इसी प्रकारका विभाजन दार्शनिकमवर पं० सुखलालजीने भी किया है, जो विवेचनके लिए सर्वथा उपयुक्त है ।
२.
. जिस दिन भगवान् महावीरको मोक्ष हुआ, उसी दिन गौतम गणधरने केवलज्ञान पद पाया। जब गौतम स्वामी सिद्ध हो गये, तब सुधर्मा स्वामी केवली हुए । सुधर्मा स्वामी मोक्ष हो जानेके बाद जम्बूस्वामी अन्तिम केवली हुए । इन केवलियोंका काल ६२ वर्ष है । इनके बाद नन्दी, नन्दिमित्र, अपराजित, गोवर्धन और भद्रबाहु ये पाँच श्रुतकेवली हुए । इन पाँचोंका काल १०० वर्ष होता है । इनके बाद विशाख, प्रोष्ठिल, क्षत्रिय, जय, नाग, सिद्धार्थ, धृतिसेन, विजय, बुद्धिल गंगदेव और सुधर्म ये ११ आचार्य क्रमसे दशपूर्वके धारियोंमें विख्यात हुए। इनका काल १८३ वर्ष है । इनके बाद नक्षत्र, जयपाल, पाण्डु, ध्रुवसेन और कंस ये पाँच आचार्य ११ ग्यारह अंगके धारी हुए । इनके बाद भरत क्षेत्रमें कोई ११ ग्यारह अंगका धारो नहीं हुआ । तदनन्तर सुभद्र, यशोभद्र, यशोबाहु और लोह ये चार आचार्य आचाराङ्गके धारी हुए। ये सभी आचार्य शेष ग्यारह ११ अंग और चौदह १४ पूर्वके एकदेशके ज्ञाता थे । इनका समय