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विषयानुक्रम
१०. स्याद्वाद और सप्तभंगी ४८०-५७२ स्याद्वादको उदभूति ४८० संजयके विक्षेपवादसे स्याद्वाद स्याद्वादको व्युत्पत्ति ४८२ नहीं निकला ५११ स्याद्वाद एक विशिष्ट भाषा- महापंडित राहुल सांकृत्यायनके पद्धति
मतकी आलोचना ५१२ विरोध परिहार
४८६
बुद्ध और संजय वस्तुकी अनन्तधर्मात्मकता
'स्यात्' का अर्थ शायद, संभव प्रागभाव
और कदाचित् नहीं ५१६ प्रध्वंसाभाव
डॉ० सम्पूर्णानन्दका मत ५२० इतरेतराभाव
४८६
शंकराचार्य और स्याद्वाद ५२१ अत्यन्ताभाव
४६०
स्व० डॉ० गंगानाथ झाकी सदसदात्मक तत्त्व
सम्मति
५२५ एकानेकात्मक तत्त्व ४६२
प्रो० अधिकारीजीकी सम्मति ५२५ नित्यानित्यात्मक तत्त्व ४६३ भेदाभेदात्मक तत्त्व
अनेकान्त भी अनेकान्त है ५२५ सप्तभंगी
४६७
प्रो० बलदेवजी उपाध्यायके अपुनरुक्त भंग सात है
मतको आलोचना ५२६ सात ही भंग क्यों ? ४६४ सर राधाकृष्णनके मतकी अवक्तव्य भंगका अर्थ ५०१ मीमांसा
५२९ स्यात् शब्दके प्रयोगका नियम ५०४ डॉ० देवराजके मतकी परमतकी अपेक्षा भंगयोजना ५०५ आलोचना ५३१ सकलादेश-विकलादेश ५०५ श्री हनुमन्तरावके मतकी कालिदिकी दृष्टि से भेदाभेदकथन५०७ समालोचना भंगोंमें सकल-विकलादेशता ५०८
धर्मकीर्ति और अनेकान्तवाद ५३२ मलयगिरि आचार्यके मतको
प्रज्ञाकरगुप्त, अर्चट व स्याद्वाद ५३५ मीमांसा
५०६ शान्तरक्षित और स्याद्वाद ५४०
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