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जीवद्रव्य - विवेचन
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वे सदा कर्मवर्गणारूप ही रहेगे, अन्यरूप नही होगे, या अन्यपरमाणु कर्मवर्गणारूप न हो सकेगे । ये भेद तो विभिन्न स्कन्ध-अवस्थामे विकसित शक्तिभेदके कारण है । प्रत्येक द्रव्यमे अपनी-अपनी द्रव्यगत मूल योग्यताओंके अनुसार, जैमी - जैमी सामग्रीका जटाव हो जाता है, वैसा-वैमा प्रत्येक परिणमन संभव है । जो परमाण शरीर अवस्थाम नोकमवगणा बनकर शामिल हुए थे, वो परमाणु मत्युके बाद गरी साक हो जाने पर जन्य विभिन्न अवस्थाओको प्राप्त हो जात | एकजातीय द्रव्यमे किसी भी द्रव्यव्यक्ति मनोका वन्धन नही लगा जा सकता ।
यह ठीक है कि कुछ परिणमन किसी उपर्याप्त द्गलो साक्षात् हो गकते है, किसीसे नहीं । जमे गिट्टी-अवस्थाको प्राप्त पद्गल परमाणु हो घट-शवस्थान धार सकते हैं, अग्नि अवस्थाको नएगल परमाणुनी, पति जग्नि जर घट दोनों ही गलकी ही पर्याये है। यह तो सम्भव है कि जग्निके परमाणु दालान्तरमे फिर घटा बने पर सीधे अग्निसे घटा नही बनाया जा सकता | मलतः पुद्गलपरमाणुओमे न तो कियो प्रकारका जानिभेद है, न नक्तिभेद है और न आकारभेद हो । ये सव भेद तो वीचकी स्कन्ध पर्याय होते है।
मिट्टी बन जाये और
गतिशीलता :
पुद्गल परमाणु स्वभावतः क्रियाशील है । उसको गति तीव्र, मन्द और मध्यम अनेक प्रकारकी होती है । उसमे वजन भी होता है, किन्तु उसकी प्रकटता स्वन्ध अवस्थामे होती है । इन स्कन्धो अनेक प्रकारके स्थूल, सूक्ष्म, प्रतिघाती और अप्रतिघाती परिणमन अवस्थाभेदके कारण सम्भव होते है । इस तरह यह अणुजगत् अपनी बाह्याभ्यन्तर सामग्री के अनुसार दृश्य और अदृश्य अनेक प्रकारको अवस्थाओंको स्वयमेव धारण करता रहता है | उसमे जो कुछ भी नियतता या अनियतता, व्यवस्था या अव्यवस्था है, वह स्वयमेव । बीच के पडाव पुरुपका प्रयत्न इनके