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५. पदार्थका स्वरूप हम पहले बता आये हैं कि प्रत्येक पदार्थ उत्पाद, व्यय और प्रोग्य रूपसे विलक्षण है। द्रव्यका सामान्यलक्षण परिणमनकी दृष्टिसे उत्पादव्यय-ध्रौव्यात्मकत्व ही है । प्रत्येक पदार्थ अनेक गुण और पर्यायोंका आधार है । गुण द्रव्यमें रहते हैं, पर स्वयं निर्गुण होते हैं। ये गुण द्रव्यके स्वभाव होते हैं। इन्हीं गुणोंके परिणमनसे द्रव्यका परिणमन लक्षित होता है । जैसे कि चेतन द्रव्यमें ज्ञान, दर्शन, सुख और वीर्य आदि अनेक सहभावी गुण हैं । ये गुण प्रतिक्षण द्रव्यके उत्पाद-व्यय स्वभावके अनुसार किसी-नकिसी अवस्थाको प्रतिक्षण धारण करते रहते हैं । ज्ञान गुण जिस समय जिस पदार्थको जानता है, उस समय तदाकर होकर 'घटज्ञान, पटज्ञान' भादि विशेष पर्यायोंको प्राप्त होता जाता है। इसी तरह सुख आदि गुणभी अपनी बाह्याभ्यन्तर सामग्रीके अनुसार तरतमादि पर्यायोंको धारण करते हैं । पुद्गलका एक परमाणु रूप, रस, गंध और स्पर्श इन विशेष गुणोंका युगपत् अविरोधी आधार है। परिवर्तनपर चढ़ा हुआ यह पुद्गल परमाणु अपने उत्पाद और व्ययको भी इन्हीं गुणोंके द्वारा प्रकट करता है, अर्थात् रूप, रस, गन्ध और स्पर्श आदि गुणोंका परिवर्तन ही द्रव्यका परिवर्तन है । इन गुणोंकी वर्तमानकालीन जो अवस्था होती है वह पर्याय कहलाती है। गुण किसी-न-किसी पर्यायको प्रतिक्षण धारण करता है। गुण और पर्यायका द्रव्य ही ठोस और मौलिक आधार है। यह द्रव्य गुणोंको कोई-न-कोई पर्याय प्रतिक्षण धारण करता है और किसी-न-किसी पूर्व पर्यायको छोड़ता है। १. "गुणपर्ययवद् द्रव्यम् ।" -तत्त्वार्थसूत्र ५।३८ । २. "द्रव्याश्रया निर्गुणा गुणाः।" -तत्त्वार्थसूत्र ५।४०