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जैनदर्शन ६. द्रव्यगत शक्तियोंके समान होनेपर भी अमुक चेतन या अचेतनमें स्थूलपर्याय-सम्बन्धी अमुक योग्यताएं भी नियत है। उनमें जिसको सामग्री मिल जाती है उसका विकास हो जाता है। जैसे कि प्रत्येक पुद्गलाणुमें पुद्गलकी सभी द्रव्ययोग्यताएँ रहनेपर भी मिट्टीके पुद्गल ही साक्षात् घड़ा बन सकते है, कंकड़ोंके पुद्गल नहीं; तन्तुके पुद्गल ही साक्षात् कपड़ा बन सकते है, मिट्टके पुद्गल नहीं। यद्यपि घड़ा और कपड़ा दोनों ही पुद्गलको पर्याएँ है। हाँ, कालान्तरमें परम्परासे बदलते हुए मिट्टीके पुद्गल भी कपड़ा बन सकते है और तन्तुके पुद्गल भी घड़ा। तात्पर्य यह किसंसारी जीव और पुद्गलोंकी मूलतः समान शक्यिा होने पर भी अमुक स्थूल पर्यायमें अमुक शक्तियां हो साक्षात् विकसित हो सकती हैं । शेष शक्तियाँ बाह्य सामग्री मिलनेपर भी तत्काल विकसित नहीं हो सकतीं।
७. यह नियत है कि उस द्रव्यको उस स्थूल पर्यायमें जितनी पर्याययोग्यताएं है उनमेसे ही जिस-जिसकी अनुकूल सामग्री मिलती है उसउसका विकास होता है, शेष पर्याययोग्यताएँ द्रव्यको मूलयोग्यताओंकी तरह सद्भावमें ही रहती है।
८. यह भी नियत है कि अगले क्षणमें जिस प्रकारकी सामग्री उपस्थित होगी, द्रव्यका परिणमन उससे प्रभावित होगा। सामग्रीके अन्तर्गत जो भी द्रव्य है, उनके परिणमन भी इस द्रव्यसे प्रभावित होंगे । जैसे कि ऑक्सिजनके परमाणुको यदि हॉइड्रोजनका निमित्त नहीं मिलता तो वह ऑक्सिजनके रूपमें ही परणित रह जाता है, पर यदि हॉइड्रोजनका निमित्त मिल जाता है तो दोनोंका ही जलरूपसे परिवर्तन हो जाता है । तात्पर्य यह कि पुद्गल और संसारी जीवोंके परिणमन अपनी तत्कालीन सामग्रीके अनुसार परस्पर प्रभावित होते रहते है । किन्तु
केवल यही अनिश्चित है कि 'अगले क्षणमें किसका क्या परिणाम होगा? कौन-सी पर्याय विकासको प्राप्त होगी? या किस प्रकारको सामग्री उपस्थित होगी ?' यह तो परिस्थिति और योगायोगके ऊपर निर्भर करता