________________
जैनदर्शन कुछ अंशमें प्रारम्भिक कार्यकी पूर्ति हो गई है और लेखन-कार्य प्रारम्भ हो गया है । अब धीरे-धीरे अन्य विद्वानोंको कार्य सौंपा जाने लगा है। जो महानुभाव इस कार्यमें लगे हुए हैं वे तो धन्यवादके पात्र हैं ही। साथ ही ग्रन्थमालाको आशा ही नहीं, पूर्ण विश्वास भी है कि उसे इस कार्यमें अन्य जिन महानुभावोंका वाँछित सहयोग अपेक्षित होगा, वह मी अवश्य मिलेगा।
प्रस्तुत पुस्तकको इस त्वरासे मुद्रण करनेमें नया संसार प्रेसके प्रोप्राइटर पं० शिवनारायणजी उपाध्याय तथा कर्मचारियोंने जो परिश्रम किया है उसके लिये धन्यवाद देना आवश्यक ही है। ____ अन्तमें प्रस्तुत पुस्तक विषयमें हम इस आशाके साथ इस वक्तव्यको समाप्त करते हैं कि जिस विशाल और अध्ययनपूर्ण दृष्टिकोणसे प्रस्तुत कृतिका निर्माण हुआ है, भारतीय समाज उसको उसी दृष्टिकोणसे अपनाएगी और उसके प्रसारमें सहायक बनेगी।
निवेदकफूलचन्द्र सिद्धान्तशास्त्री बंशीधर व्याकरणाचार्य २६।१०.५५
मंत्री, ग० वर्णों जैन ग्रन्थमाला,
बनारस