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( १३ ) समाहि कामे समणे तवस्सी ।
उ०, ३२,,४,
टीका --- साधु को - आत्मार्थी को यदि समाधि की इच्छा है, राग-द्वेष को क्षय करने की इच्छा है, तो तपशील बने इन्द्रियो के ऊपर सयम रक्खे, और अनासक्त जीवन व्यतीत करे । निरन्तर परसेवा में ही काल व्यतीत करता रहे ।
( १४ )
असिधारा गमणं चेव, दुक्करं चरिउँ तयो ।' उ०, १९, ३८
( १५ ) दुविहे सामाइए,
[ तप-सूत्र
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टीका -- कष्ट साध्य परन्तु सुन्दर परिणाम वाले तंप का तथा सेवा और सयम का आचरण करना तलवार की धार पर चलने के समान दुष्कर है ।
( १६ )
सामाइएणं सावज्ज जोग बिरहूं जणयइ ।
श्रगार सामाइए, अणगार सामाइए । ठाणा०, २ राठा, उ, ३, ६
टीका -- सामायिक दो प्रकार की कहीं गई है - १ आगारिक सामायिक और २ अणागारिक सामायिक । मर्यादित समय की, गृहस्थो द्वारा की जाने वाली सामायिक आगारिक है और जीवन-पर्यंत के लिये ग्रहण की जाने वाली - साधुओ की सामायिक अणागारिक है
उ०, '२९, ८, बी, ग०
• टीका - सामायिक व्रत से सावद्य-योग की निवृत्ति से मन, वचन और काया को पापकारी प्रवृत्ति का निरोध होता है । सावद्य योग से विरति पैदा होकर निरवद्य योग मे प्रवृत्ति होती है ।