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सूक्ति-सुधा ]
( ९ ) ) कोहणे सच्चरते तवस्सी ।
सू०, १०, १२
टीका–जो कठिन से कठिन और प्रतिकूल परिस्थिति में भी क्रोध नहीं करता है, और विकट से विकट संकट मे भी सत्य को नहीं छोड़ता है, वही पुरुष सच्चा तपस्वी है, वह श्रेष्ठ तपस्वी हैं । वही आदर्श पर सेवक है ।
. ( १ ) अप्पा दन्तो सही होइ ।
उ० १,१५
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टीका — जो अपनी आत्मा को विषय- कषाय से, विकार - वासना से, आसक्ति-मूर्च्छा से और तृष्णा-आशा से अलग करता रहता आत्मा का इस प्रकार दमन करता रहता है वही अंत में सुखी होता है ।
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( ११ )
णो पूयणं तवसा आवहेज्जा । .
2 सू०, ७, २७.
टीका - तपस्या के द्वारा पूजा की इच्छा नही करे, तपस्या का ध्येय आत्म-कल्याण का रखे, तपस्या के द्वारा पूजा - मान-सन्मान की - आकांक्षा नही करे । पूजा सन्मान की भावना नियाणा है, और नियाणा से मोक्ष प्राप्ति के स्थान पर ससार की ही वृद्धि होती है ।
( १२ ) वेज्ज निज्ञ्जरा पेही ।
उ० २,३७
टीका - निर्जरा प्रेक्षी, पूर्व कर्मो को क्षय करने की इच्छा रखने चाला, दुखको, परिपह को, उपसर्ग को और कठिनाइयो को शांतिपूर्वक सहन करे । अधीर और अशांत नही बन जाय !
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