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[ चारित्र-सूत्र शव्द से ज्ञान और दर्शन दोनों ही समझना चाहिये । “सम्यग् ज्ञानदर्शन चारित्राणि मोक्ष मार्ग" अथवा - "ज्ञान-क्रियाभ्याम् मोक्ष." वाक्य भी इसी सूक्ति के पर्याय वाची वाक्य है।
खंते अभिनिब्बुड़े दंते, वीत गिद्धी सदा जए।
सू०, ८, २५, टीका-आत्म-कल्याण की भावना वाला पुरुष क्षमा-शील हो, लोभादि कषाय से रहित हो, जितेन्द्रिय हो, विषय-भोग मे आसक्ति रखने वाला नही हो, तथा सदा यत्न पूर्वक, विवेक-पूर्वक जीवन व्यतीत करने वाला हो। .
जवा लोह मया चेव, जयवा सुदुक्कर ।
उ०,१९, ३९ टीका-सयम यानी इन्द्रिय-दमन का मार्ग और मन के विकारों पर विजय करने का मार्ग लोहे के जौ चवाने के समान अत्यन्त कठिनतम कार्य है । यह सुदुष्कर व्रत है। .
सामाइथ मा तस्स जं, जो अप्पाणं भए ण दसए ।
सू०, २, १७, उ, २ . टीका-जो अपनी आत्मा मे जरा भी भय अनुभव नही करता है, जो सदैव निर्भय, निद्वंद्व रहता है, जो प्रिय, सत्य और सन्दर बात को विना लाग-लपेट के निर्भयता पूर्वक कहता है, उसके लिएसदैव सामयिक ही है । भय के साथ सामायिक भाव नहीं रह सक