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( १२ ) बुद्धा हु ते अंतकडा भवंति ।
सू०, १२, १६
टीका -- ज्ञानी पुरुष अपने ससार का अत करने वाले होते है । ज्ञानी ज्ञान वल से वस्तु स्थिति समझ कर भोगो और तृष्णा के जाल में नही फँसते है, इससे शीघ्र कर्मो का नाश कर उन्हे मोक्ष तक पहुँचने मे कोई खास कठिनाई नही आती है । वे शीघ्र ही अपने आत्म वल, चारित्र वल, कर्मण्यता बल, सेवा वल, और ज्ञान वल से संसार के सामने आदर्श महापुरुप वन जाते है |
( १३ )
जे एवं जाग से सव्वं जाण, जे सव्वं जागर से एग जाइ ।
आ०, ३, १२३, उ, ४
[ ज्ञान-सूत्र
टीका -- जिसने एक यानी अपनी आत्मा का स्वरूप भलीभाति समझ लिया है, उसने सारे संसार का स्वरूप समझ लिया है और जिसने सारे ससार का स्वरूप समझ लिया है, उसने अपनी आत्मा का भी स्वरूप समझ लिया है । जो एक को जानता है, वह सवको जानता है, जो सबको जानता है, वह एक को भी जानता है ।
( १४ )
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सीहे मियाण पवरे, एवं वह वहुस्सुए । उ०, ११, २०
टीका — जैसे केशरी सिंह सभी वन-चर- जीवो मे श्रेष्ठ और प्रमुख होता है, वैसे ही बहुश्रुत ज्ञानी भी विनीत होने पर ही शोभा थाता है । ज्ञानकी शोभा विनय पूर्वक सम्यक् आचरण पर हो आश्रित है ।