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सूक्ति-सुधा ]
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देने वाली हो सकेगी । अतएव ज्ञान होना सर्व प्रथम आवश्यक है । आदि मे ज्ञान और तत्पश्चात् दया को स्थान दिया गया है ।
( ३ ) दुविधा वोही,
गाण बोही चेव दंसण वोही चेव ।
ठाणा०, २ रा, ठा०, ३, ४, ११
टीका - समझ दो प्रकार की है- १ ज्ञान समझ और २ दर्शन
समझ ।
वस्तुओ को जानना - पहिचानना ज्ञान समझ है और उन पर उसी रीति से विश्वास करना दर्शन समझ है ।
( ४ ) नाणे जाई भावे ।
उ०, २८, ३५
टीका -- सम्यक् ज्ञान होने पर ही, सभी द्रव्यो का और उनकी पर्यायो का, उनके गुणो का और उनके धर्मो का भली भांति ज्ञान हो सकता है ।
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( ५ )
नाणेण वितान हुन्ति चरणगुणा ।
उ०, २८, ३०
टीका - जिस आत्मा में सम्यक् ज्ञान नही है, उस आत्मा का चारित्र भी ऐसी अवस्था में सम्यक् चारित्र नही कहा जा सकता है ।
( ६ )
दुविहे नाणे पच्चक्खे चेव परोक्खे चैव ।
ठाणा०, २रा, ठा, १ला, उ०, २४,
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टीका--प्रमुख रूप से ज्ञान दो प्रकार का होता है - प्रत्यक्ष और
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