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सद्धा परम दुल्लहा उ०, ३, ९
टीका - यदि सौभाग्य से ज्ञान - दर्शन - चारित्र रूप मोक्ष मार्ग की वाते सुनने का मौका मिल जाय, तो भी उनपर श्रद्धा आना आत्म विश्वास का पैदा होना अत्यन्त कठिन है | दुर्लभ है !
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णो सुलभ वोहिं च माहियं । सू०, २,१९,उ, ३
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[ दुर्लभाग- शिक्षा-सूत्र
टीका – सम्यक् ज्ञान और सम्यक दर्शन मिलना अत्यन्त कठिन है । अनेक जन्मो में सचित पुण्य के उदय से ही ज्ञान' और ' दर्शन की प्राप्ति होती है । इसलिए जीवन को प्रमादमय नही बनाकर पर-सेवामय ही बनाना चाहिए ।
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संवोही, खलु दुलहा
सू०, २, - १, उ, 8
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टीका - सम्यक ज्ञान, सम्यक् दर्शन की प्राप्ति होना अत्यन्त कठिन है । आत्मा मे कषायो की शाति होने पर और पुण्य के उदय - होने पर ही सम्यक् ज्ञान और सम्यक् दर्शन की प्राप्ति होती है । इसलिये जीवन मे प्रमाद को स्थान नही देना चाहिये ।
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दुलहया कारण फांसया ।
उ०, १०, २०
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- टीका श्रेष्ठ धर्म का अहिंसा प्रधान धर्म का और स्याद्वाद प्रधान सिद्धान्त का काया द्वारी आचरण किया जाना तो अत्यन्त
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