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सूक्ति-सुधा ]
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दुर्लभ है । अतएव प्रमाद से सदैव सावधान रहना चाहिये और मन, वचन तथा काया को धर्म - मार्ग मे प्रवृत्त करना चाहिये ।
( ८ ) दुलहाओ तहच्चाओ ।
सू०, १५, १८
टीका — सम्यग् दर्शन की प्राप्ति के अनुरूप हृदय के शुद्ध परिणाम होना, निर्दोष अन्त. करण का होना अत्यन्त कठिन है । शुभ कर्मों का उदय होने पर ही सम्यग् दर्शन के अनुसार हृदय में सरलता, प्रशस्यता, शुभ ध्यान और शुभ- लेश्या पैदा हो सकती है ।
( ९ ) श्रयरिअत्तं पुरावि दुल्लहं ।
उ०, १०, १६
टीका - यदि दैवयोग से मनुष्य शरीर मिल जाय, तो भी आर्यधर्म की व अहिसा प्रधान धर्म की प्राप्ति होना तो बहुत ही दुर्लभ हैं, इसलिए क्षण - मात्र का भी प्रमाद नहीं करना चाहिये ।
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( १० ) लभेयं समुस्सए । सू०, १५, १७
टीका -- मनुष्यभव प्राप्त करना बहुत ही कठिन है, इसलिये इससे जितना भी फायदा उठाया जा सके, उतना उठा लेना चाहिये t अन्यथा पछताना होगा |
( ११ ) ..
अहीरा पंचेंदियया हु दुल्लहा ।
उ०, १०, १७
टीका- पाचो इद्रियां सर्वाङ्ग सुन्दर और स्वस्थ मिलना अत्यन्त दुर्लभ है, इसलिये क्षणमात्र का भी प्रमाद नही करना चाहिये ।
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